Article 1 to 395 in Hindi :- आज हम आपको अपने देश के सभी Article ( अनुच्छेद ) के बारें में बताने जा रहें हैं जो कि किसी भी परिक्षा की दृष्टि से बहुत ही जरूरी हैं। अगर आप किसी भी प्रतियोगी परिक्षा की तैयारी कर रहें हैं तो आप को ये बताने की जरूरत नही हैं कि Article 1 to 395 in Hindi कितना जरूरी हैं। तो आइये हम आपको Article 1 to 395 in Hindi के बारें में विस्तार से बताते हैं।
कई बार यह भी होता हैं कि आप पढ़ते तो हैं पर आप भूल भी जाते हैं तो अब ऐसा नही होगा क्योकि आज हम आपको बहुत ही सरल भाषा में समझाने वाले हैं जिसको आप अगर एक बार पढ़ लेते हैं तो आप जरूर परिक्षा में Article ( अनुच्छेद ) से आया हुआ कोई भी प्रश्न गलत नही होगा। तो आप एक बार इसको विस्तार से पूरा जरूर पढ़े। हम आपको Article 1 to 395 in Hindi की PDF बुक भी दे देगें जिससे की आप इस PDF Book को Download करके भी पढ़ सकते हैं।
Article 1 to 395 in Hindi ( भारतीय संविधान ) सभी अनुच्छेद व भाग, इतिहास
भारतीय संविधान के भाग
भारतीय संविधान 22 भागों में विभजित है तथा इसमे 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं।
भाग |
विषय |
अनुच्छेद |
---|
भाग 1 |
संघ और उसके क्षेत्र |
(अनुच्छेद 1-4) |
भाग 2 |
नागरिकता |
(अनुच्छेद 5-11) |
भाग 3 |
मूलभूत अधिकार |
(अनुच्छेद 12 – 35) |
भाग 4 |
राज्य के नीति निदेशक तत्त्व |
(अनुच्छेद 36 – 51) |
भाग 4A |
मूल कर्तव्य |
(अनुच्छेद 51A) |
भाग 5 |
संघ |
(अनुच्छेद 52-151) |
भाग 6 |
राज्य |
(अनुच्छेद 152 -237) |
भाग 7 |
संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा निरसित |
(अनु़चछेद 238) |
भाग 8 |
संघ राज्य क्षेत्र |
(अनुच्छेद 239-242) |
भाग 9 |
पंचायत |
(अनुच्छेद 243- 243O) |
भाग 9A |
नगरपालिकाएँ |
(अनुच्छेद 243P – 243ZG) |
भाग 10 |
अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र |
(अनुच्छेद 244 – 244A) |
भाग 11 |
संघ और राज्यों के बीच सम्बन्ध |
(अनुच्छेद 245 – 263) |
भाग 12 |
वित्त, सम्पत्ति, संविदाएँ और वाद |
(अनुच्छेद 264 -300A) |
भाग 13 |
भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम |
(अनुच्छेद 301 – 307) |
|
भाग 14 |
संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ |
(अनुच्छेद 308 -323) |
भाग 14A |
अधिकरण |
(अनुच्छेद 323A – 323B) |
भाग 15 |
निर्वाचन |
(अनुच्छेद 324 -329A) |
भाग 16 |
कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबन्ध सम्बन्ध |
(अनुच्छेद 330- 342) |
भाग 17 |
राजभाषा |
(अनुच्छेद 343- 351) |
भाग 18 |
आपात उपबन्ध |
(अनुच्छेद 352 – 360) |
भाग 19 |
प्रकीर्ण |
(अनुच्छेद 361 -367) |
भाग 20 |
संविधान के संशोधन |
अनुच्छेद |
भाग 21 |
अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध |
(अनुच्छेद 369 – 392) |
भाग 22 |
संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ और निरसन |
(अनुच्छेद 393 – 395) |
Article 1 to 395 in Hindi ( भारतीय संविधान ) सभी अनुच्छेद व भाग (Indian Constitution PDF)
Download
भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्त्रोत हैं-, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव भारतीय शासन अधिनियम 1935 का है. भारत के संविधान के निर्माण में निम्न देशों के संविधान से सहायता ली गई है:
(1) संयुक्त राज्य अमेरिका: मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि एवं वित्तीय आपात.
(2) ब्रिटेन: संसदात्मक शासन-प्रणाली, एकल नागरिकता एवं विधि निर्माण प्रक्रिया.
(3) आयरलैंड: नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था, राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज-सेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन, आपातकालीन उपबंध.
(4) ऑस्ट्रेलिया: प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची का प्रावधान, केंद्र एवं राज्य के बीच संबंध तथा शक्तियों का विभाजन.
(5) जर्मनी: आपातकाल के प्रवर्तन के दौरान राष्ट्रपति को मौलिक अधिकार संबंधी शक्तियां.
(6) कनाडा: संघात्मक विशेषताएं अवशिष्ट शक्तियां केंद्र के पास.
(7) दक्षिण अफ्रीका: संविधान संशोधन की प्रक्रिया प्रावधान.
(8) रूस: मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान.
(9) जापान: विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया.
नोट: भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्त्रोत हैं, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव ‘भारतीय शासन अधिनियम: 1935 का है. भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं, जो 1935 ई० के अधिनियम से या तो शब्दश: लिए गए हैं या फिर उनमें बहुत थोड़ा परिवर्तन किया गया है।
सँविधान के 21 Fact:
Fact No. 1: संविधान को English में “Constitution ” कहा जाता है.
Fact No. 2: भारत के संविधान को बनाने में डॉ भीमराव अम्बेडकर ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसीलिए डॉ अम्बेडकर को संविधान का निर्माता कहा जाता है.
Fact No. 3: संविधान बनाने वाली कमिटी के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया था.
Fact No. 4: भारत का संविधान पूरे विश्व में सबसे लम्बा और बड़ा संविधान है.
Fact No. 5: भारतीय संविधान पूरा हस्त लिखित है इसे श्री श्याम बिहारी रायजादा ने लिखा था.
Fact No. 6: भारतीय संविधान को बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया था और इन पन्नों को सजाने का काम शांतिनिकेतन के कलाकारों ने किया था.
Fact No. 7: संविधान की ओरिजनल प्रतियाँ आज भी भारत के संसद में है. जहाँ इसे हीलियम के अंदर डाल कर लाइब्रेरी में रखा हुआ है.
Fact No. 8: भारतीय संविधान को बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा.
Fact No. 9: हमारा संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर पूरा तैयार हो गया था लेकिन इसे सरकार ने 26 जनवरी 1950 को लागू करवाया.
Fact No. 10: हमारे देश को विश्व का सबसे बेहतरीन संविधान माना जाता है.
Fact No. 11: भारत के मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां शामिल थी. वर्तमान समय में
भारतीय संविधान में 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 22 भाग हैं.
Fact No. 12: जब से हमारा संविधान बना है तब से लेकर अब तक संविधान में सिर्फ 124 संविधान संशोधन हुए है जो हमारे संविधान की मजबूती को दर्शाता है.
Fact No. 13: भारतीय संविधान में पहले संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार था जिसे 44वें संशोधन द्वारा सन 1978 में हटाया गया.
Fact No. 14: भारतीय संविधान का पहला संशोधन सन 1951 में हुआ था.
Fact No. 15: संविधान के अनुसार – हमारे देश का अपना कोई धर्म नहीं है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.
Fact No. 16: भारतीय संविधान में कई चीजे दूसरे देशो से ली गई है जिनमे मुख्यतः – रूस, अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा, जापान, अफ्रीका और फ्रांस शामिल है.
Fact No. 17: अबाइड विथ मी गाने को गणतन्त्र दिवस की परेड में बजाया जाता है.
Fact No. 18: हमारा देश संविधान बनने से पहले ब्रिटिश सरकार बनाये गये एक्ट 1935 को मानता था.
Fact No. 19: संविधान के अनुसार – भारत रत्न, पद्म भूषण और कीति चक्र पुरस्कार गणतंत्र दिवस के दिन ही वितरित किये जाते है.
Fact No. 20: संविधान के अनुसार – स्वतंत्रता दिवस पर देश के लिए संबोधन प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है वही गणतंत्र दिवस पर देश के लिए सम्बोधन राष्ट्रपति करता है.
Fact No. 21: भारतीय संविधान द्वारा देश के नागरिको को 6 मौलिक अधिकार दिए गये है.
भारतीय संविधान के विकास का संक्षिप्त इतिहास
1757 ई. की प्लास की लड़ाई और 1764 ई. बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने शासन का शिकंजा कसा. इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किए, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियां बनीं.
1. 1773 ई. का रेग्यूलेटिंग एक्ट: इस एक्ट के अंतर्गत कलकत्ता प्रेसिडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता का उपयोग संयुक्त रूप से करते थे. इसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं – (i) कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया. (ii) बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसिडेंसियों का जनरल नियुक्त किया गया. (iii) कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई.
2. 1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट: इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ- (i) कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स – व्यापारिक मामलों के लिए (ii) बोर्ड ऑफ़ कंट्रोलर – राजनीतिक मामलों के लिए.
3. 1793 ई. का चार्टर अधिनियम: इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन आदि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गई.
4. 1813 ई. का चार्टर अधिनियम: इसके द्वारा (i)कंपनी के अधिकार-पत्र को 20 सालों के लिए बढ़ा दिया गया. (ii) कंपनी के भारत के साथ व्यापर करने के एकाधिकार को छीन लिया गया. लेकिन उसे चीन के साथ व्यापर और पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 सालों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा. (iii)कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया.
5. 1833 ई. का चार्टर अधिनियम: इसके द्वारा (i)कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए. (ii) अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया. (iii) बंगालग के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा. (iv) भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गई.
6. 1853 ई. का चार्टर अधिनियम: इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धांत समाप्त कर कंपनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गई.
7. 1858 ई. का चार्टर अधिनियम: (i) भारत का शासन कंपनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों सौंपा गया. (ii) भारत में मंत्री-पद की व्यवस्था की गई. (iii)15 सदस्यों की भारत-परिषद का सृजन हुआ. (iv)भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित किया गया.
8. 1861 ई. का भारत शासन अधिनियम: गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया, (ii) विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ, (iii) गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई. (iv) गवर्नर जरनल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गई.
9. 1892 ई. का भारत शासन अधिनियम: (i)अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुआत हुई, (ii) इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई.
10. 1909 ई० का भारत शासन अधिनियम [मार्ले -मिंटो सुधार] – (i) पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक प्रतिनिधित्व का उपबंध किया गया. (ii) भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई. (iii) केंद्रीय और प्रांतीय विधान-परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला. (iv) प्रांतीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गई।
11. 1919 ई० का भारत शासन अधिनियम [मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार] – (i) केंद्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गई- प्रथम राज्य परिषद तथा दूसरी केंद्रीय विधान सभा. राज्य परिषद के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था. केंद्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निवार्चित तथा 41 मनोनीत होते थे. इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था. दोनों सदनों के अधिकार समान थे. इनमें सिर्फ एक अंतर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था.
(ii) प्रांतो में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया. इस योजना के अनुसार प्रांतीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया- आरक्षित तथा हस्तांतरित. आरक्षित विषय थे – वित्त, भूमिकर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियां, छापाखाना, समाचार पत्र, सिंचाई, जलमार्ग, खान, कारखाना, बिजली, गैस, व्यालर, श्रमिक कल्याण, औघोगिक विवाद, मोटरगाड़ियां, छोटे बंदरगाह और सार्वजनिक सेवाएं आदि. हस्तांतरित विषय –
(i) शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन, चिकित्सा सहायता.
(ii) सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उघोग, तौल तथा माप, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि. (iii) आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद के माध्यम से करता था; जबकि हस्तांतरित विषय का प्रशासन प्रांतीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था.
(iv) द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया.
(v) भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है.
(vi) इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया.
12. 1935 ई० का भारत शासन अधिनियम: 1935 ई० के अधिनियम में 451 धाराएं और 15 परिशिष्ट थे. इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
(i) अखिल भारतीय संघ: यह संघ 11 ब्रिटिश प्रांतो, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मलित हों. प्रांतों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किंतु देशी रियासतों के लिय यह एच्छिक था. देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुईं और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया.
(ii) प्रांतीय स्वायत्ता: इस अधिनियम के द्वारा प्रांतो में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया.
(iii) केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना: कुछ संघीय विषयों [सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामलें] को गवर्नर जनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया. अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर- जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गई, जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था.
(iv) संघीय न्यायालय की व्यवस्था: इसका अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक विस्तृत था. इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई. न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी काउंसिल [लंदन] को प्राप्त थी.
(v) ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता: इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था. प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका: इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे.
(vi) भारत परिषद का अंत : इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद का अंत कर दिया गया.
(vii) सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार: संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों – भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया.
(viii) इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था.
(xi) इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बर