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ऐसे करे अर्ध मत्स्येन्द्रासन , नहीं होंगी शुगर और किडनी से जुडी बीमारियां और भी है लाभ

" अर्ध मत्स्येन्द्रासन " हठ योग में किए जाने वाले १२ प्रमुख आसनों में से एक है।  इस आसन का नाम एक महान योगी मच्छिंद्रनाथ के नाम पर रखा गया है। संस्कृत शब्द अर्ध्य मत्स्येन्द्रासन  का निर्माण ४ नामों से मिलकर बना है। जो इस प्रकार है - अर्ध -मत्स्य - इंद्र - आसन , अर्ध यानी आधा ,मस्त्य मतलब मछली ,इंद्र यानी राजा और आसन यानी मुद्रा। अर्ध मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास करते समय, शरीर को कमर से मोड़ा जाता है। इसलिए इसे वक्रासन के नाम से भी जाना जाता है।



Ardha Matsyendrasana - अर्ध मत्स्येंद्रासन योग






  1. अर्ध मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास किसी शांत और हवादार स्थान पर करे।
  2. निचे बैठ जाए और दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर पास लाये।
  3. अपने मेरुदंड को सीधा रखे , बाएं पैर के पंजे को अपने दाएं हिप्स (नितंब) के निचे रखे।
  4. अब अपने दाहिने पैर को बाएं पैर के ऊपर से ले जाकर ,बाएं पैर के घुटने के पास रख दे।
  5. इस स्थिति में कमर ,गर्दन,और कंधे को अपनी दाहिने और मोडे। इस बात का ध्यान रखे की आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो।
  6. जब आप दाहिने और मुड़ते है, तो संतुलन बनाने के लिए अपने पीछे दाहिना हाथ और अपने बाएं हाथ को अपने दाहिने घुटने पर रख सकते है।
  7. अभ्यास के दौरान श्वास को सामान्य गति से लेते रहे।
  8. लगभग २ से ३ मिनट तक मुद्रा में बने रहे ,श्वास को बाहर निकालते हुए दाहिने हाथ को छोड़े और वापस सामान्य स्थिति में आ जाए।
  9. इस क्रिया को पैरों में बदलाव लाकर करे।
  10. इस आसन को करते समय आप अपने ध्यान को मेरुदंड या विशुद्ध चक्र पर लगा सकते है।






 Health Benefits Of Ardha Matsyendrasana Pose - अर्ध मत्स्येन्द्रासन के लाभ





  1. इस आसन के नियमित अभ्यास से मेरुदंड अधिक शक्तिशाली और लचीला होता है।
  2. इसका अभ्यास पेनक्रिया की मालिश कर उन्हें उत्तेजित करता है ,जिससे मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों को काफी हद तक सहायता मिल जाती है।
  3. नियमित अभ्यास से शरीर एड्रेनाइल और पित्त स्रावों को नियंत्रित करने में सक्षम बनता है।
  4.  स्लिप डिस्क संबंधित बीमारियों को ठीक करने सहायक है।
  5. इसके अभ्यास से पेट पर विशिष्ट दबाव पड़ता है तथा पेट के आंतरिक अंगों की मालिश करता है।
  6. जिसके कारण पाचनतंत्र मजबूत बना रहता है साथ ही पाचक रस को बढ़ाने में भी लाभकारी है।
  7. इसका अभ्यास व्यक्ति को तनाव एवं चिंता से मुक्त कर देता है।
  8. यह छाती को चौड़ा कर ,आंतरिक कोशिकाओं को खोलता है,जिससे अधिक से अधिक शुद्ध प्राणवायु साधक ग्रहण कर पाता है। 
  9. खून को स्वच्छ बनाकर रोगप्रतिकारक शक्ति को बढ़ाता है।
  10. प्रजनन तंत्र के साथ ही मूत्र प्रणाली को भी निरोगी बनाये रखने में ये अपनी अहम् भूमिका निभाता  है। 
  11. स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधित समस्याएं तथा गुप्तरोग एवं वीर्यविकारों में लाभकारी है।
  12. नाभि चक्र को मजबूत कर कुंडलिनी जागरण में सहायक है।








Keep Precautions While Practicing This Asana - सावधानी



  •  इस आसन को करते समय पेट के विशिष्ट अंगों पर दबाव पड़ता है। इसलिए मासिक धर्म तथा गर्भावस्था के दौरान इस आसन को ना करे।
  • जो लोग गंभीर स्लिप डिस्क या मेरुदंड की समस्या से पीड़ित है ,उन्हें इस आसन से बचना चाहिए।
  • हर्निया या अल्सर से पीड़ित व्यक्ति अपने डॉक्टर की सहमति के साथ और प्रमाणित योग शिक्षक की देखरेख में ही इस आसन का अभ्यास करे।
  • दिल ,दिमाग और पेट की सर्जरी होनेपर भी इस आसन को ना करे।










Few Things You Need To Know Before Doing Above Pose - ध्यांन रखने योग्य बातें




  •   ये जरुरी है की इस आसन का अभ्यास करते समय आपका पेट खाली हो।
  • इसलिए ये अच्छा होगा की आप इसका अभ्यास सुबह करे।
  • अन्य समय इसका अभ्यास करने के लिए भोजन और अभ्यास में ४ से ५ घंटे का समय अवश्य रखे।






इस आसन का अभ्यास आपको विशिष्ट अनुभूति कराता है।  एक बार जब आप इसका अभ्यास करेंगे तो निश्चित  ही ये आपको अद्वितीय लाभों से परिचित कराएगा। अगर आपको ये लेख पसंद आता है तो आप कमेंट कर के अपनी राय दे सकते है। अपने दोस्तों के साथ इसे शेयर करना ना भूले


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