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लाल बहादुर शास्त्री - एक परिचय

             'जय जवान जय किसान' के नारे की याद आते ही हमारे देश के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्रीजी की याद आने लगती है। सं. 1965 में अप्रत्याशित रूप से हुए भारत-पाक युद्ध में श्री शास्त्रीजी ने राष्ट्र को बहुत ही उत्तम नेतृत्व प्रदान कर पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। उस युद्ध को याद करते हुए आज भी पकिस्तान तिलमिला जाता है। इससे पहले 20 अक्टूबर 1962 से 21 नवंबर 1962 तक भारत-चीन का युद्ध हुआ था, इस युद्ध के दौरान भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे। उनके नेतृत्व में भारत को चीन से हार का सामना करना पड़ा था। जिसके परिणाम आज भी हम भुगत रहे है। 

             भारत सेवक संघ से जुड़ कर देशसेवा का व्रत लेते हुए अपने राजनीतिक जीवन की शुरुवात करनेवाले श्री. लाल बहादुर शास्त्रीजी सहीं अर्थ में सच्चे गाँधीवादी थे। उन्होंने अपना सारा जीवन बहुत ही सादगी से बिताते हुए गरीबों की सेवा में लगाया था। उन्होंने भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों तथा आंदोलनों में सक्रीय भागीदारी दी और उसी के परिणाम स्वरुप कई बार उन्हें जेलों में रहना पड़ा था।

 जन्म:

              श्री.लाल बहादुर शास्त्रीजी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय स्थित वाराणसी में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री. मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एक प्रारथमिक विद्यालय में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे। कुछ समय पश्चात उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक की नौकरी कर ली थी। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण श्री। लाल बहादुर शास्त्रीजी को उनकी माताजी रामदुलारीजी के आलावा सभी लोग उनको प्यार से नन्हे कहकर ही बुलाया करते थे।

             जब श्री. शास्त्रीजी अठारह महीने के हुए तब दुर्भाग्यवश उनके पिता का निधन हो गया था। इसके पश्चात उनकी माताजी रामदुलरीजी मिर्जापुर अपने पिता श्री. हजारीप्रसादजी के घर चली गई थी। बालक शास्त्रीजी की परवरिश करने में उनके मौसा श्री. रघुनाथ प्रसाद ने उनकी माताजी रामदुलरीजी का काफ़ी सहयोग किया था। 

              श्री. शास्त्रीजी ने ननिहाल में रहते हुए प्रार्थमिक शिक्षा प्राप्त की थी। इसके पश्चात हाई स्कूल की शिक्षा 'हरिश्चंद्र हाई स्कूल' से तथा काशी विद्यापीठ में करते हुए वहीं से 'शास्त्री' की उपाधि प्राप्त की। जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द 'श्रीवास्तव' उन्होंने हटा दिया तथा अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया।

विवाह : -

           श्री. लाल बहादुरजी का विवाह सं. 1928 में मिर्जापुर के ही निवासी श्री. गणेशप्रसादजी की पुत्री ललिताजी से हुआ था। इस दंपत्ति को कुल छह संताने हुई, जिनमे दो पुत्रियाँ कुसुम और सुमन है। चार पुत्रों में श्री. हरिकृष्ण, श्री. अनिल, श्री. सुनील तथा श्री. अशोक शास्त्री शामिल है। श्री.शास्त्रीजी ने 1921 के असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में प्रमुखता से हिस्सा लिया था।

 राजनीतिक जीवन: -
   
               भारत सेवक संघ से जुड़ने के पश्चात देशसेवा का व्रत लेनेवाले श्री. शास्त्रीजी ने अपना राजनीतिक जीवन की शुरुवात की थी। गांधीजी ने 8 अगस्त1942 को बम्बई से अंग्रेजों को 'भारत छोड़ो' का और भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया था।

              9 अगस्त 1942 को श्री. शास्त्रीजी ने इलाहबाद [आज का प्रयागराज] पहुँचकर इस आंदोलन के गाँधीवादी नारे को चतुराई से "मरो नहीं, मारो!" में बदल दिया था। उन्होंने अप्रत्याशित रूप से क्रांति की दावानल को पूरे देश में प्रचंड रूप दे दिया था। यह आंदोलन पूरे ग्यारह दिन भूमिगत रहते हुए चलाने के पश्चात 19अगस्त 1942 को श्री. शास्त्रीजी को सरकार द्वारा गिरफ्तार किया गया था।
              इससे पहले जब श्री.शास्त्रीजी भारत सेवक संघ से जुड़े थे, तब उन्होंने संघ की इलाहबाद इकाई के सचिव के रूप में कार्य आरम्भ किया था। इस कारण उनके राजनितिक सलाहकारो के रूप में श्री. पुरुषोत्तमदास टंडन और पंडित गोविंदवल्लभ पंतजी को देखा जाता है। इलाहाबाद में रहते हुए पंडित नेहरू के साथ उनकी निकटता बढ़ी। श्री. शास्त्रीजी के बढ़ते कद के कारण उन्हें नेहरू मंत्रिमंडल में गृहमंत्री का पद प्राप्त हुआ था। 
              27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान देहावसान हो गया था। श्री. शास्त्रीजी की साफ़ सुथरी छवि के कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया। श्री.शास्त्रीजी ने 9 जून 1964 को भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में पद ग्रहण किया था।
श्री. शास्त्रीजी ने प्रधानमंत्री बनने के पश्चात अपने प्रथम सवांददाता सम्मलेन में बताया था कि ' उनकी शीर्ष प्रार्थमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है। उन्होंने ऐसा करने में सफलता भी प्राप्त की थी।
   
              सं. 1965 में पकिस्तान ने अचानक भारत पर हवाई हमला कर दिया था। इस हमले को देखते हुए राष्ट्रपति सर्वेपल्लि राधाकृष्णन ने आपात बैठक बुलाई, जिसमे तीनो रक्षा अंगों के प्रमुख तथा मंत्रिमंडल के सदस्य शामिल हुए थे। इस बैठक में प्रधानमंत्रीजी को सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूछा-"सर! क्या हुक्म है?" श्री. शास्त्रीजी ने अवसर गंवाए बिना उत्तर दिया कि-"आप देश कि रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?"
प्रधानमंत्री श्री. लाल बहादुर शास्त्रीजी ने इस युद्ध के दौरान उत्तम नेतृत्व प्रदान करते हुए 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया। इस वज़ह से भारत की जनता का मनोबल बढ़ा तथा सारा देश एकजुट हो गया। जिस कारण इस युद्ध में पाकिस्तान की करारी हार हो गई। इस हार के कारण पाकिस्तान शांति समझौते के लिए तैयार हो गया था।

              आखिर 11 जनवरी 1966 को सोवियत संघ के ताशकंद में रूस की मध्यस्तता के बीच प्रधानमंत्री श्री. लाल बहादुर शास्त्रीजी तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच शान्ति समझौता हुआ और कुछ ही घंटो के भीतर श्री. शास्त्रीजी का निधन हो गया था।

निधन पर कई सवाल:-

               श्री. शास्त्रीजी की मृत्यु को लेकर कई तरह के कयास लगाए जाते रहे है। उनके परिवारजनों की ओर से भी आरोप लगाए जाते रहें है कि उनकी मृत्यु हार्ट अटैक से नहीं, बल्कि ज़हर देने से हुई है। उनकी पत्नी के अनुसार जब शास्त्रीजी का पार्थिव शरीर रूस से दिल्ली आया तो उस समय उनका चेहरा नीला पड़ गया था और आँख के पास सफ़ेद धब्बे पड़ गए थे। उस दौरान ना तो कोई जांच कमिशन बैठाया गया था और ना ही रूस में पोस्टमार्टम हुआ था।
                सं. 2009 में जब श्री. शास्त्रीजी कि मौत का सवाल उठाया गया तो भारत सरकार ने यह उत्तर दिया था कि शास्त्रीजी के नीजी डॉक्टर आर. एन. चुग तथा कुछ रूस के डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत कि जांच कि थी, परन्तु सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है। आज भी उनके मौत का राज बना हुआ है।



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