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मध्यकालीन भारत की प्रमुख जनजातियाँ बंजारे और स्थापित समुदाय का इतिहास

History of tribes Nomads and settled communities of Medieval India: मध्यकालीन भारत का इतिहास सम्पन्न और सारगर्भित रहा है इस इतिहास में एक अभिन्न पहलू है- मध्यकालीन भारत की जनजातियाँ बंजारे और स्थापित समुदाएँ इन इकाईयों का भी एक विशाल इतिहास रहा है मध्यकालीन भारत के इतिहास के दौरान अनेक जनजातियाँ.

आस्थिरवासी जन और स्थापित समुदाएँ इतिहास का हिस्सा बनें। साथ ही साथ इस भाग का सभी राजनैतिक और प्रशासनिक गतिविधिईनपर भी ख़ास असर रहा क्योंकि यह सब उस काल की जनसँख्या का मुख्य अंग था जो प्रत्यक्ष तौर से सारी सल्तनतों से सम्भन्धित रहा है.

जिसने मध्यकालीन भारत के प्राचीन काल को अति रुचिपूर्ण और सशक्त बनाया। मध्यकालीन भारत की जनजातियाँ बंजारे और स्थापित समुदायों में अनेक नाम शामिल है जो मध्यभारत के इतिहास के पन्नों में दर्ज हुए और उस काल का एक आवश्यक हिस्सा बन गए।

मध्यकालीन भारत की सामाजिक व्यवस्था- Social system of Medieval India

मध्यकालीन भारत के इतिहास में भारत के कई भाग ने वर्ण व्यवस्था को स्वीकार किया इस वर्ण व्यवस्था का मूल स्वरूप ब्राम्हणों द्वारा प्रदान किया गया था ऒर इन नियमों को राजाओं और साम्राजय द्वारा अपनाया गया मुख्यतः इस वर्ण व्यवस्था की जड़े दिल्ली सल्तनत के काल के दौरान प्रमाणित हुई।

दिल्ली सल्तनत के राजाओं के सफर के साथ विकसित हुआ और वहीं दूसरी ओर समाज का वो हिस्सा भी था जो इस वर्ण व्सवस्था का अनुसरण नहीं करता था और यह हिस्सा भी श्रेणियों में विभाजित था समाज के इस भाग को जनजातियाँ कहा गया।

मध्यकालीन भारत की प्रमुख जनजातियाँ और समुदाएँProminent tribes and communities of Medieval India

भारत के प्राचीन मध्यकाल के दौरान सशक्त जनजातियों ने राजकीय भार को सम्भाला। 13 वीं और 14 वीं शताब्दी के बीच पंजाब में खोखर (khokhar) जनजाति की खास पकड़ थी। अकबर के साम्राज्य के समय में गाक्खर (Gakkhar) जनजाति के नेतृत्वकर्ता कमल खान गाक्खर प्रमुख थे।

मुल्तान और सिंध में लँगहस (Langahs) और अरघुन जनजाति ने विशाल राज्यों को नियंत्रित किया और फिर मुग़ल साम्राज्य में शामिल हो गई western himalaya पश्चिम हिमालय के भाग में शेफर्ड जनजाति (Shepherd Tribe) प्रमुख थी। भारत के उत्तरी भाग पर पूर्णतः जनजातियों का नियंत्रण था.

जिनमे नागा (Naga) और अहोम (Ahoms) प्रमुख थे। बिहार और झारखंड के क्षेत्रों  में 12 वीं शताब्दी के दौरान छेरों जनजाति प्रमुख थी। महारष्ट्र और कर्नाटक में कॉलिस (kolis) जनजाति मुखय थी। भील जनजाति मध्यकालीन भारत की विशेष जंजातिओं में से एक है, साथ ही साथ इस पहलू में गोंड (Gond) जनजाति भी प्रख्यात है।

Gond Tribe प्रमुख जनजातियाँ गोंड जनजातियाँ

गोंद जनजाति वन आवरण इलाके से सम्बंधित है जिसमें गोंडवाना (Gondvana) प्रमुख है गोंड (जनजाति) भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं गोंड भारत के कटि प्रदेश – विंध्यपर्वत, सतपुड़ा पठार छत्तीसगढ़ मैदान में दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम – में गोदावरी नदी तक फैले हुए पहाड़ों और जंगलों में रहने वाली आस्ट्रोलायड नस्ल तथा द्रविड़ परिवार की एक जनजाति.

जो संभवत: पाँचवीं-छठी शताब्दी में दक्षिण से गोदावरी के तट को पकड़कर मध्य भारत के पहाड़ों में फैल गई आज भी मोदियाल गोंड जैसे समूह हैं जो गोंडों की जातीय भाषा गोंडी (Gondi) है जो द्रविड़ परिवार की है और तेलुगु, कन्नड़, तमिल आदि से संबन्धित है।

गोडों का भारत की जनजातियों में महत्वपूर्ण स्थान है जिसका मुख्य कारण उनका इतिहास है 15वीं से 17वीं शताब्दी के बीच गोंडवाना में अनेक गोंड राजवंशों का सशक्त और सफल शासन स्थापित था इन शासकों ने बहुत से दृढ़ दुर्ग, तालाब तथा स्मारक बनवाए और सफल शासकीय नीति तथा दक्षता का खास परिचय दिया।

इनके शासन की परिधि मध्य भारत से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक पहुँचती थी 15 वीं शताब्दी में चार महत्वपूर्ण गोंड साम्राज्य थे जिसमें खेरला गढ मंडला देवगढ और चाँदागढ प्रमुख थे गोंड राजा बख्त बुलंद शाह ने नागपुर शहर की स्थापना कर अपनी राजधानी देवगढ से नागपुर स्थानांतरित किया था।

गोंडवाने की प्रसिद्ध रानी दुर्गावती (Durgawati) गोंड जाति की ही थी गोंडों का नाम प्राय: खोंडों के साथ लिया जाता है जैसे भीलों का कोलों के साथ यह संभवत: उनके भौगोलिक सांन्निध्य के कारण है इन तथ्यों से यह प्रमाणित होता है की गोंड जनजाति (Gond Tribe) मध्यकालीन भारत की एक प्रमुख जनजाति रही है।

अहोम जनजाति Ahom Tribe- प्रमुख जनजातियाँ

13 वीं शताब्दी में अहोम जनजाति के सदस्य ब्रम्हपुत्र तट से आए हुए माने जाते है जो वर्तमान काल मे म्यंमार का हिस्सा है इस जनजाति ने भूमिहारों को पराजित कर अपना अलग साम्राजय स्थापित किया इन लोगों को खेती की भी खास समझ थी 1662 ईसवी में मुग़लो ने अहोम जनजाति पर आक्रमण कर इन्हें हराया और अनेक कार्यों के लिये इन पर दबाव डाला गया।

17 वीं शताब्दी की शुरुआत तक इनके अर्चना एवं अनुष्ठान की प्रक्रिया ब्राम्हणों (Bramhins) द्वारा प्रेरित हुई मध्यकालीन भारत की प्राचीनता को अहोम जनजाति ने अपने साहित्य (Literature) और सभ्यता (Culture)से सम्पन्न बनाया। अहोम जनजाति का साहित्य मूलतः अहोमी भाषा मे लिखा गया और फिर अनेक भाषाओं में अनुवादित किया गया।

भील जनजाति Bhil Tribe- प्रमुख जनजातियाँ

भील मध्य भारत की एक जनजाति है। भील जनजाति के लोग भील भाषा बोलते है। भील, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में एक अनुसूचित जनजाति है, अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खादिम भी भील पूर्वजों के वंशज हैं।

भीलत्रिपुरा और पाकिस्तान के सिन्ध के थारपरकअर जिले में भी बसे हुये हैं। भील शब्द की उत्पत्ति “बिल” से हुई है जिसका द्रविड़ भाषा में अर्थ होता हैं “धनुष”।इनमें वधूमूल्य का प्रचलन पाया जाता है। म.प्र. के निमाड( Nimad) में रहने वाले अधिकांश जनजाति यही है।

मध्यकालीन भारत के अस्थिर वासी प्रमुख जनजातियाँ

मध्यकालीन भारत के अस्थिर वासी वह लोग थे जो जानवरों पर अपना सामान लाद कर एक नगर से दूसरे नगर भृमण करते थे। इनका दैनिक जीवन सामानों के क्रय-विक्रय से चलता था। जिसमें दूध से बनी सामग्री, ऊन, घी, अनाज, बर्तन, वस्त्र आदि प्रमुख थे अस्थिर वासियों में बंजारे प्रमुख थे।

जिनके कारवां का नाम (Taanda)  तांडा था। मध्यकालीन भारत के शासक अल्लाउद्दीन खिलजी बंजारों के द्वारा ही अपने अनाज को शहर जब बाज़ारों तक पहुचाते थे। यह बंजारे शासकों से अनाज एकत्रित कर घोड़ा-गाड़ी और बैल-गाड़ी (Bullock Carts) का इस्तेमाल कर नगरों में व्यापार करते थे।

इन बंजारों में कला के और भी खास रुझान देखने को मिला। बंजारों के मुख्य जीवनशैली में नृत्य और संगीत का भी प्रमुख स्थान था साथ ही साथ वह लोगों का मनोरंजन कर अपनी रोज़ी-रोटी का भी इंतजाम करते थे। बंजारे सबसे अधिक रस्सियों, ऊन, अनाज, घी, जूट आदि का व्यापार करते थे।

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तो यह था मध्यकालीन भारत की जनजातियाँ, बंजारे और स्थापित समुदाएँ का सम्पूर्ण इतिहास। History of tribes, Nomads and settled communities of Medieval India.

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