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Rima Bose : उड़ान - Poem- Poem

Rima bose उड़ान - Poem

अगर  हम
पक्षी होते


तो
स्वछंद रूप से गगन में
पंखो को पसार कर उड़ते


संसार
की कोई फ़िक्र
नहीं होती


जहां
दाना पानी मिलता
,वहां चुग लेते


ऐसी
उड़ान भरते की हवा भी  हमे
नहीं छू सकती


रवि
की पहली किरण
से पहले उठ जाते


दिन
ढलने से पहले अपने छोटे
आशियाने में वापस
जाते


अगर
हम पक्षी होते


रोज-
रोज समाज में
फैली अराजकता, हिंसा
से दूर रहते


रात
को गहरी निद्रा
का आनंद उठाते


आकाश
के चारो ओर चक्कर लगते


प्रकृति
की अद्भूत सुंदरता
को निहारते


अगर
हम पक्षी होते


स्वार्थी
मानव बन जाते है शिकारी


मार
-गिराकर करते है अपनी इच्छा
पूरी


कभी
जाल में फंस जाते


कभी
पिंजरे में बांध
हो जाते


खो
देते है हम आज़ादी हमारी


अगर
हम पक्षी होते





रंग
-बिरंगे फूलो पर बैठे




आज़ादी
का लुफ्त उठाते


तरु
की छायांदार डालियों
पर बैठे


खट्टे
-मीठे फल खाते


प्यार
भरे संदेश इस
दुनिया को हम पहुंचाते


देश
के सैनिको को
सलाम करते


और
आज़ादी के गीत गाते


अगर
हम पक्षी होते


लेखिका  : रीमा बोस








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