एक समय की बात है, एक गाँव में एक छोटे से लड़के का नाम आर्यन था। आर्यन बहुत ही जिज्ञासु और पढ़ाई के प्रति उत्सुक था। उसके माता-पिता भी उसके इस प्रवृत्ति को देखकर बहुत खुश थे और उन्होंने उसे गुरुकुल में भेज दिया।
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गुरुकुल में आर्यन ने बहुत ही मेहनती और आत्मनिर्भर बनने की कला सीखी। एक दिन, उसके गुरु ने उससे कहा, "आर्यन, शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ ज्ञान प्राप्त करना नहीं होता, बल्कि इसका उद्देश्य तुम्हें जीवन को समझने और उसे बेहतर बनाने की क्षमता प्रदान करना होता है।"
आर्यन ने गुरु के इस उपदेश को गहराई से समझा और उसने अपने जीवन के प्रति नए दृष्टिकोण बनाए। उसने सीखा कि शिक्षा से ही उसे जीवन के सभी पहलुओं को समझने की क्षमता प्राप्त हो सकती है।
एक दिन, गुरुकुल का समय समाप्त हो गया और आर्यन ने अपने गुरु से अलविदा कहकर अपने गाँव की ओर प्रवृत्त हुआ। वहां पहुंचकर उसने अपने ज्ञान का प्रयोग करने का निर्णय लिया।
आर्यन ने अपने गाँव के बच्चों को शिक्षा देने का कार्य शुरू किया और उन्हें नए-नए दृष्टिकोण से जीवन को समझने की प्रेरणा दी। उसने यह सिखाया कि विद्या से ही मुक्ति होती है, और मुक्ति का अर्थ है समझ, उदारता, और जीवन को सही दिशा में बदलने की क्षमता।
आर्यन ने अपनी शिक्षा के माध्यम से अपने गाँव को समृद्धि और संस्कृति का केंद्र बना दिया और वहां के लोग उसे अपने गुरु बनाकर सम्मानित करने लगे। उसने सिद्ध किया कि यदि विद्या सही दिशा में प्रयोग हो, तो वह सभी को मुक्ति की दिशा में ले जा सकती है।
इस प्रकार, आर्यन ने विद्या के माध्यम से न केवल खुद को, बल्कि अपने समाज को भी समृद्धि और संस्कृति की दिशा में मार्गदर्शन किया और उसने यह सिद्ध किया कि "या विद्या सा विमुक्तये" - विद्या ही हमें मुक्ति की दिशा में ले जा सकती है।
या विद्या सा विमुक्तये पूर्ण श्लोक
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