एक आदमी था अपने जिंदगी में कसम खा रखी थी मैं ब्राह्मण/पुजारी को कुछ भी दान नहीं दूँगा। उसके मरने पर उसके साथियों ने बेटे को सिखाया कि तुम श्राद्ध कर्म मत करो तुम्हारे पिता इसके विरोधी थे।
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उस व्यक्ति का अंतिम संस्कार ऐसा ही हुआ। अतृप्त "ब्राह्मण विरोधी" प्रेत बनकर भटकने लगा।
अपने पुत्रों से पिंडदान नहीं मिलने के कारण वह उन्हें रोग व्याधि से परेशान करने लगा।
हारकर उसके परिवार वाले किसी ब्राह्मण के पास समस्या समाधान के लिए गए।
ब्राह्मण ने कहा कि आपके घर पर किसी अतृप्त पितर का प्रकोप है उसे शांत कराओ।
ब्राह्मण से ऐसा सुनने पर परिवार वाले उस "ब्राह्मण विरोधी" की अधूरी अत्येष्टि स्वीकार किए।
"अतृप्त ब्राह्मण विरोधी" को ब्राह्मण का महत्व तो समझ मे आ रहा था लेकिन; इन्द्रिय विहीन वो किसी को बता नहीं पा रहा था।
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