Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

बुरबक टाईप लगते हैं-श्री श्री वाले रविशंकर.



(पिछले दिनों श्री श्री वाले रविशंकर पटना आए थे. उस दौरान मैंने जो महसूस किया था उसे लिख रखा था लेकिन उस वक्त ब्लॉग पे लगाना भूल गया था. अभी क्या है कि श्री श्री के हालिया बुरबकई से भरे बयान( सरकारी स्कूल से नंकसली निकलते हैं…) के बाद लगा कि इस लेख रूपी माल को मार्केट में उतार दूं.)

“आर्ट ऑफ लीविंग” मतलब ज़िन्दगी को जीने-गुजारने का तरीका. यह  तरीका सभी के लिए एक सा नहीं हो सकता. क्योंकि हर किसी की जिन्दगी अलग है. मुश्किलें अलग है. जीवन को जीने का ढ़ंग अलग है. और हर  इन्सान अपनी समझ से, अपने तरीके से और अपने संसाधनों के बीच अपनी जिन्दगी जीने का तरीका खुद-ब-खुद  सीख लेता है. लेकिन एक बाबा हैं. जो जगह-जगह शिविर लगा के. सीडी और कैसेट से अपना नाच-गाना दिखा-सुना के “आर्ट ऑफ लीविंग” सिखलाने की बात करते हैं.

ऐसा ही एक  शीविर पिछले दिनों पटने में भी लगा. जिस दिन चार बजे से शीविर लगना था उसी दिन दोपहर में दो बजे “आर्ट ऑफ लीविंग’ सिखलाने वाले श्री श्री रविशंकर पटना हवाई अड्डे पे उतरे. दस सीट वाले चार्टर प्लेन से. श्री श्री…गया से पटना आए थे. गया से पटने की दूरी को ट्रेन से आम लोग तीन घंटे में तय करते हैं लेकिन श्री श्री ने यह दूरी चालिस मिनट में तय की.

वो इस दूरी को आराम से ट्रेन की एसी बोगी में भी बैठ के तय कर सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यहीं से यह तय हुआ कि श्री श्री साधारण लोगों जैसी जिन्दगी नहीं जीते. फिर वो कैसे आम लोगों को ज़िन्दगी जीने का तरीका सिखला-बता सकते हैं? खैर, श्री श्री प्लेन से उतरने के बाद एक मंहगे गेस्ट हाउस में चले गए आराम करने. मतलब  चालिस मिनट की आरामदायक यात्रा के बाद ही उन्हें कमर को सीधा करने की जरुरत महसूस हुई. जबकि इस देश की बड़ी आबादी बगैर थके दिन रात काम करती है ताकि वो भोजन कर सके और उसके बाल-बच्चे खाना-पीना कर सकें.

एयरपोर्ट पर मैंने श्री श्री को काफी नजदीक से देखा.  उनका चेहरा काला पड़ा हुआ था. चेहरे पे तेज जैसा कुछ नहीं था. आंखो पे काला चश्मा चढ़ा हुआ था. एयर्पोर्ट पर खड़े लोगों की तरफ हाथ हिलाते हुए श्री श्री जल्दी से कार में बैठ गए और निकल लिए गेस्ट हाउस के लिए.

करीब-करीब दो घंटे तक आराम करने के बाद श्री श्री रविशंकर उस बड़े और आलिशन स्टेज पर अवतरित हुए जिसे खास तौर से तैयार किया गया था. जमीन से पांच फीट की उंचाई लिए उस स्टेज को गुलाब की कोमल पंखुरियों से सजाया गया था.  स्टेज के सामने कुछ दूर तक  कुर्सियां लगी थीं जिसपे पटना के कुछ प्रभावी लोग अपने परिवार के साथ बैठे थे और जहां कुर्सियां खत्म हो रही थीं वहां से आम लोगों की भीड़ खड़ी थी. स्टेज पे जो रविशंकर मचल-मचल के चहलकदमी कर रहे थे. भजन पे झूम रहे थे. लगातार मुस्कराए जा रहे थे वो मुझे एयरपोर्ट वाले रविशंकर से अलग लग रहे थे. चेहरे से कालापन गायब था. आंखों पर से काला चश्मा गायब था. हां..आंखो में सुरमा लगा था. चेहरे पे गोरापन बिखरा था. शरीर पे धक-धक उजला कपड़ा लिपटा था. बाल और दाढ़ी में से भी रौशनी फूट रही थी. ऐसा लग रहा था कि मेकअप करने वाले ने बहुत मेहनत की है. श्री श्री रविशंकर मंच पे चारो तरफ घूम-फिर रहे थे. झूम रहे थे और हाथ में लिए माईक से लगातार सामने मौजूद लोगों से भी झूमने के लिए कह रहे थे. उनके मुताबिक ज़िन्दगी जीने के लिए झूमना जरुरी है. नाचना जरुरी है. मुश्किल से मुश्किल वक्त में भी मुस्कुराते रहना जरुरी है.

लेकिन मुझे नहीं लगता कि श्री श्री को तनिक भी अंदाजा होगा कि आमलोगों की जिन्दगी में कैसी-कैसी मुश्किलें आती हैं.  क्योंकि पिछले दो घंटे में(एयरपोर्ट से उतरने और शीविर वाले मैंदान में आने के बीच) मैंने श्री श्री रविशंकर को जिस तरह से ज़िन्दगी जीते हुए देखा है  उस तरह से जीने के बारे में तो आम आदमी सपने में भी नहीं सोंचता.

अगर श्री श्री केवल गया से पटना तक का सफर ही लोकल ट्रेन या बस से तय कर लेते तो यह समझ जाते कि सफर करने वाले उनसे बेहतर आर्ट ऑफ लीविंग जानते हैं. उनसे ज्यादा झूमते, नाचते और गाते हैं और हमेशा न सही लेकिन समय आने पर जी खोल के हंसते-मुस्कुराते हैं. श्री श्री को अपने इस छोटे से यात्रा में ही यह सीख मिल जाती कि आम आदमी सभी मुश्किलों को गले लगाते हुए अपनी जिन्दगी जीता है. और फिर वो अपनी संस्था का नाम “आर्ट ऑफ लीविंग” नहीं रखते. घूम-घूम के जिन्दगी जीने का गुरुमंत्र न बांटते फिरते.



This post first appeared on बतकही, please read the originial post: here

Share the post

बुरबक टाईप लगते हैं-श्री श्री वाले रविशंकर.

×

Subscribe to बतकही

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×