पथिक अभी विश्राम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ.
रवि सा जल
ना रुक, अथक चल.
सीधी राह एक धर.
रह एकनिष्ठ
बढ़ निडर .
अभी सुबह है,
बाकी है अभी
दुपहर का तपना.
अभी शाम कहाँ,
मंजिल पूर्व आराम कहाँ.
चलना तेरी मर्यादा,
ना रुक, सीख बहना.
अवरोधों को पार कर
मुश्किलों को सहना.
आगे बढ़ , बन जल
स्वच्छ, निर्मल.
अभी दूर है सिन्धु
अभी मुकाम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ ..
पथिक अभी विश्राम कहाँ
मंजिल पूर्व आराम कहाँ....
..... नीरज कुमार नीर