मेरी आँखों के सामने
रूका हुआ है
धुएं का एक गुबार
जिस पर उगी है एक इबारत ,
जिसकी जड़ें
गहरी धंसी हैं
जमीन के अन्दर.
इसमें लिखा है
मेरे देश का भविष्य,
प्रतिफल , इतिहास से कुछ नहीं सीखने का .
उसमे उभर आयें हैं ,
कुछ चित्र,
जिसमे कंप्यूटर के की बोर्ड
चलाने वाले , मोटे चश्मे वाले
युवाओं को
खा जाता है,
एक पोसा हुआ भेड़िया,
लोकतंत्र को कर लेता है ,
अपनी मुठ्ठी में कैद
और फिर फूंक मारकर
उड़ा देता है उसे
राख की तरह
मानो यह कभी था ही नहीं.
बन जाता हैं स्वयं शहंशाह
टेलीविजन पर बहस करने वाले
बड़े-बड़े बुद्धिजीवि
भिड़ा रहे हैं जुगत ,
अपनी सुन्दर बीवियों और
बेटियों को छुपाने की
धुआं धीरे धीरे नीचे उतर कर
आ जाता है जमीन पर,
पत्थर के पटल पर
मोटे मोटे अक्षरों में दर्ज
हो जाता है इतिहास.
मैं अपनी आँखों के सामने
इतिहास बदलते देख रहा हूँ ..
(बात अगर दिल तक पहुचे एवं विचार से सहमत हों तो अपने कमेन्ट अवश्य दें )
(बात अगर दिल तक पहुचे एवं विचार से सहमत हों तो अपने कमेन्ट अवश्य दें )
नीरज कुमार नीर
NEERAJ KUMAR NEER
NEERAJ KUMAR NEER
चित्र गूगल से साभार