Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

मिलन की बेला :गीत

चंचल नयना स्मित मुख ललाम कपोल कचनार सखी रे
कुंतल गुलमोहर की छाँव ,  मृदु अधर रतनार सखी रे ..

जब विहँसे अवदात कौमुदी
मुकुलित कुमुदों के आँगन में
तुम मुझसे मिलने आना प्रिय
उज्ज्वल तारों के प्रांगण में
मैं वहाँ मिलूंगा लेकर बाहों का गलहार सखी रे

पीली साड़ी चूनर धानी
समीरण सुवासित सी आना
ऊसर उर के खालीपन को
प्रेम पीयूष से भर जाना
सुर लोक की अप्सरा सी मुस्काती गुलनार सखी रे

आँखों से ही बातें होंगी
शब्दों के सेतू भंग रहे
उन्माद भरे जीवन पल में
बस प्रेम रहे आनंद रहे
खिल उठेगा रूप करूँ जब होठों से शृंगार सखी रे

पत्थर गाएँगे गीत मधुर
तरुवर संगीत सुनाएँगे
ठिठक रुक जाएगी सरिता
धरा और नभ मुस्कायेंगे
बदल जाएगा सम्पूर्ण जगत का व्यवहार सखी रे

हम गीत प्रेम के गाएँगे
श्याम भँवर  के जग जाने तक
पूर्व देश में दूर क्षितिज पर
स्वर्ण कलश के उग आने तक
गीत है समर्पित तुमको ले जाओ उपहार सखी रे

चंचल नयना स्मित मुख ललाम कपोल कचनार सखी रे
कुंतल गुलमोहर की छाँव ,  मृदु अधर रतनार सखी रे ..
.............   #neeraj_kumar_neer  
......... #नीरज कुमार नीर ..........
#love #geet #valentine 


This post first appeared on Kavyasudha, please read the originial post: here

Share the post

मिलन की बेला :गीत

×

Subscribe to Kavyasudha

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×