मैं जिंदगी बांटता हूँ
पर इसके तलबगार
मुर्दे नहीं हो सकते
लहलहाते हरियाये
हँसते खिलखिलाते पौधे
जिनमे फल की उम्मीद है
जल उन्हीं में डालूँगा
सूख चुके /सड़ चुके पौधों में
जल व्यर्थ ही जाएगा
मैं ढूँढता हू
आनंद और ऊर्जा की खोज में रत
स्वाभिमानी
स्थायी जड़ता से ऊबे
परिवर्तन की चाह वाले
युवा सिपाही।
हजार वर्ष की परतंत्रता ने
जिनके लहू को
कर दिया है नीला
खराब हो चुंका है जिनका जीन
उन्हें जाना होगा
पीछे नेपथ्य में
जहां अकूत शांति है
उनकी जगह वहीं हैं
मुर्दों में असहिष्णुता नहीं होती
धर्म, राष्ट्र, न्याय से हीन
ये वैसे प्रेत हैं
जो कभी कभी
धर लेते हैं कमजोर मस्तिष्क युवाओं को
............ नीरज कुमार नीर
पर इसके तलबगार
मुर्दे नहीं हो सकते
लहलहाते हरियाये
हँसते खिलखिलाते पौधे
जिनमे फल की उम्मीद है
जल उन्हीं में डालूँगा
सूख चुके /सड़ चुके पौधों में
जल व्यर्थ ही जाएगा
मैं ढूँढता हू
आनंद और ऊर्जा की खोज में रत
स्वाभिमानी
स्थायी जड़ता से ऊबे
परिवर्तन की चाह वाले
युवा सिपाही।
हजार वर्ष की परतंत्रता ने
जिनके लहू को
कर दिया है नीला
खराब हो चुंका है जिनका जीन
उन्हें जाना होगा
पीछे नेपथ्य में
जहां अकूत शांति है
उनकी जगह वहीं हैं
मुर्दों में असहिष्णुता नहीं होती
धर्म, राष्ट्र, न्याय से हीन
ये वैसे प्रेत हैं
जो कभी कभी
धर लेते हैं कमजोर मस्तिष्क युवाओं को
............ नीरज कुमार नीर
#neeraj_kumar_neer