ये बात तो हम सभी जानते हैं कि जनकपुरी में जब सीता स्वयंवर का आयोजन हुआ,तो राजा जनक ने देश-विदेश के राजाओं को निमंत्रित किया। सबको उस स्वयंवर के लिये बुलाया परन्तु राजा दशरथ या अयोध्या के किसी व्यक्ति को स्वयंवर का निमंत्रण नहीं दिया। इसका कारण कोई आपसी बैर नहीं था, अपितु एक ऐसी घटना थी,जिससे राजा जनक को डर था कि कहीं फिर से वही हुआ तो क्या होगा? क्यों निमंत्रण नहीं दिया राजा जनक ने राजा दशरथ को? क्या थी वो घटना आइये जानते हैं...
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एक बार राजा जनक के शासनकाल में एक व्यक्ति का विवाह हुआ। विवाह के बाद वह पहली बार सज-धज अपनी ससुराल को जा रहा था। कुछ दूर जाने पर रास्ते
में एक जगह उसको दलदल मिला। उसने थोड़ा पास जाकर देखा, तो उसमें एक गाय फँसी हुई थी। जो शायद फँसे-फँसे मरने की दशा में आ गयी थी। उस व्यक्ति ने उसको देखा, तो उसके मन में गाय को बचाने का खयाल आया। परन्तु दुसरे ही क्षण मन में एक और विचार आया। उसने सोचा- "ये गाय तो कुछ देर में मरने वाली
ही है। अगर मैं इसको यहाँ से बाहर निकालने इस दलदल में घुसा, तो मेरे कपड़े और जूते खराब हो जाएँगे और मैं अपनी ससुराल में ऐसी हालत में कैसे जा पाउँगा? यह सोचकर वह गाय के ऊपर पैर रखकर आगे बढ़ गया। जैसे ही वह आगे बढ़ा, गाय ने जब उसे जाते हुए देखा तो उस व्यक्ति को श्राप दिया कि जिसके
लिए तू जा रहा है, उसे देख नहीं पाएगा। यदि तू उसे देखेगा भी तो वह तत्काल ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी। यह कहकर कुछ ही समय में गाय के प्राण निकल गये।
उस श्राप को सुनकर वह व्यक्ति दुविधा में फँस गया। उसे अपने किये पर बहुत पछ्तावा हो रहा था। परन्तु अब कुछ नहीं हो सकता। जो होना था, वो हो गया। अब वह
व्यक्ति गौ-श्राप से मुक्त होने का विचार करने लगा। मन में बहुत बड़ा बोझ लिये वह ससुराल पहुँचा। वहाँ पहुँचकर वह दरवाजे के बाहर ही बैठ गया और यह विचार करने लगा। अगर मेरी नज़र मेरी पत्नी पर पड़ गयी तो क्या होगा? कुछ समय बाद परिवार के अन्य सदस्यों ने उसे घर के अंदर चलने का अनुरोध किया किन्तु वह नहीं
गया। रास्ते में जो घटना घटित हुयी थी, उसके बारे में भी किसी को नहीं बताया। उसके दिमाग में तो गाय के द्वारा दिया गया श्राप बार-बार गूँज रहा था। जब उसकी पत्नी को उसके घर के अन्दर न आने की बात पता चली तो उसने अपने घर वालों से कहा,"चलो! मैं ही चलकर उन्हें घर के अन्दर लेकर आती हूँ।" पत्नी ने जब जाकर उससे
कहा,"आप घर के अन्दर क्यों नहीं आ रहे हो? और मैं जो भी बोल रहीं हूँ उसे सुनकर भी, मेरे सामने होते हुए भी मेरी ओर क्यों नहीं देखते हो?" वह व्यक्ति अपनी पत्नी की बात सुनने पर भी चुप रहा।
काफी अनुरोध करने के बाद उसने रास्ते में घटित पूरी घटना बताई। पत्नी ने कहा,'"मैं भी पतिव्रता स्त्री हूँ। ऐसा कैसे हो सकता है?
आप मेरी ओर तो देखो।" "अपनी पत्नी की बात सुनकर उसने जैसे ही नज़र उठाकर अपनी पत्नी की ओर देखा वैसे ही उसकी आँखों की रोशनी चली गई। और वह गाय के श्रापवश पत्नी को देख ही नहीं सका। उस व्यक्ति की पत्नी पतिव्रता थी। इसी कारण उसकी मृत्यु नहीं हुयी। यह देखकर पत्नी अपने पति को साथ लेकर राजा जनक
के दरबार में गई। वहाँ जाकर उसने पूरी घटना बताई।
राजा जनक ने राज्य के सभी विद्वानों को सभा में बुलाकर समस्या बताई। उन्होंने अपने दरबार में बैठे हुए ब्राह्मणों को कहा- "हे ब्राह्मण देव! गौ-श्राप से निवृत्ति का कोई सटीक उपाय हो तो बतायें।" सभी विद्वानों ने आपस में विचार करके एक उपाय बताया। उन्होनें कहा- "यदि
कोई पतिव्रता स्त्री छलनी में गंगाजल लाकर, उस जल के छींटे इस व्यक्ति की दोनों आँखों पर मारे तो गौ-श्राप से मुक्ति मिल सकती है और इसके आँखों की रोशनी पुनः लौट सकती है। राजा ने पहले अपने महल के अन्दर की रानियों सहित सभी स्त्रियों से पूछा। तो राजा को सभी के पतिव्रता होने में संदेह की सूचना मिली। ऐसा
सुनकर राजा जनक चिन्तित हो गए। तब उन्होंने आस-पास के सभी राजाओं को सूचना पहुँचाई। उन्होनें उन्हें संदेश में कहा- "उनके राज्य में यदि कोई पतिव्रता स्त्री है, तो उसे ससम्मान राजा जनक के दरबार में भेज दिया जाए। जब यह सूचना अयोध्या के राजा दशरथ को मिली तो उसने पहले अपनी सभी रानियों से पूछा। प्रत्येक
रानी का यही उत्तर था कि राजमहल तो क्या आप राज्य की किसी भी महिला यहाँ तक कि झाडू लगाने वाली ही क्यों न हो, उसे भी पतिव्रता ही पाएँगे। राजा दशरथ को इस समय अपने राज्य की महिलाओं पर आश्चर्य हुआ। उन्होने अपने राज्य की सबसे निम्न मानी जाने वाली सफाई करने वाली महिला को बुलाया। उस
महिला से राजा दशरथ ने सम्मानपूर्वक पतिव्रता होने के बारे में पूछा। तो उस महिला ने स्वीकृति में सिर हिला दिया। तब राजा ने यह दिखाने के लिए कि अयोध्या का राज्य सबसे उत्तम है, उस महिला को ही राज-सम्मान के साथ जनकपुर को भेज दिया। राजा जनक ने उस महिला का पूर्ण राजसी ठाठ-बाट से स्वागत किया। राजा ने उस
महिला को समस्या बताई। साथ ही ब्राह्मणों द्वारा जो उपाय बताया गया था वो भी बताया। महिला ने राजा को उस कार्य को करने की स्वीकृति दे दी। अगले दिन महिला छलनी लेकर गंगा किनारे गई। वहाँ पहुँच कर उसने प्रार्थना की,"हे गंगा माता! यदि मैं पूर्ण पतिव्रता हूँ, यदि मैने अपने तन और मन से अपनी पति को ही परमेश्वर
माना है तो गंगाजल की एक बूँद भी छलनी से नीचे नहीं गिरनी चाहिए।" ऐसी प्रार्थना करके जब उसने गंगाजल को छलनी में भरा तो जल की एक बूँद भी नीचे नहीं गिरी। यह पवित्र गंगाजल कहीं रास्ते में छलककर नीचे न गिर जाए यह सोचकर उसने थोड़ा-सा गंगाजल नदी में ही गिरा दिया और पानी से भरी छलनी को
लेकर राजदरबार में आ पहुँची। राजा और दरबार में उपस्थित सभी नर-नारी यह दृश्य देख आश्चर्यचकित रह गए। तब उस महिला को ही उस व्यक्ति की आँखों पर छींटे मारने का अनुरोध किया गया। उसने जैसे ही गंगाजल के छींटे उस व्यक्ति की आँखों पर मारे वैसे ही उसके आँखों की रोशनी वापस आ गयी। ये देखकर दरबार में
उपस्थित लोग बहुत ही प्रसन्न हुए। उस महिला को पूरे राजसम्मान के साथ पारितोषिक दिया गया। जब उस महिला ने अपने राज्य को वापस जाने की अनुमति माँगी तो राजा जनक ने अनुमति देते हुए जिज्ञाशावश उस महिला से उसकी जाति के बारे में पूछा। तब उस महिला ने बताया कि वो एक सफाईकर्मी है तो राजा
आश्चर्यचकित हो गये। सीता स्वयंवर के समय राजा ने सोचा कि जिस राज्य की सफाई करने वाली स्त्री इतनी पतिव्रता है तो उसका पति कितना शक्तिशाली होगा। यदि राजा दशरथ ने उसी प्रकार के किसी व्यक्ति को स्वयंवर में भेज दिया और यदि उसने धनुष बाण तोड़ दिया तो क्या होगा?
राजकुमारी किसी निम्न श्रेणी के
व्यक्ति को न वर ले यही सोचकर अयोध्या नरेश राजा जनक ने राजा दशरथ को निमन्त्रण नहीं भेजा। लेकिन भाग्य में लिखा कौन टाल सका है? वही हुआ जो होना था! अयोध्या के राजकुमार राम वन में विचरण करते हुए अपने गुरु के साथ जनकपुर पहुँच ही गए। तथा धनुष तोड़कर राजकुमार राम ने सुकुमारी सीता का
वरण कर ही लिया।
इस तरह राजा जनक ने अयोध्या का कोई ऐरा गैरा व्यक्ति धनुष बाण को न तोड़ दे इस आशंका के चलते राजा दशरथ को सीता स्वयंवर का निमंत्रण नहीं भेजा था।
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