हम हमारे बड़े बुजुर्गों से कई बार सुनते है कि अमावस्या के दिन बाल नहीं धोना चाहिए। क्या आपने कभी इस बारें में सोचा कि ऐसा क्यों? क्यों हमारे बड़े बुजुर्ग अमावस्या के दिन बाल धोने मना करते है? क्या सचमुच अमावस्या के दिन बाल धोना अशुभ है? आइए, जानते है क्या है सच्चाई?
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हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार,अमावस्या के दिन महिलाओं को कभी भी बाल नहीं धोने चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि अमावस्या के दिन बाल धोना अशुभ होता है। अमावस्या के दिन बाल धोने से घर परिवार में क्लेश बढ़ता है, दरिद्रता बढ़ती है, धन की हानी होती है,घर की बरकत चली जाती है, पिता और भाई पर बोझ बढ़ता है और इसका बुरा प्रभाव उनके जीवन पर भी पड़ता है। इतना ही नहीं तो माता लक्ष्मी नाराज हो जाती है।
ये तो हुई हमारी धार्मिक मान्यता। लेकिन क्या कभी आपने इस बात पर थोड़ा सा भी गौर किया कि हमारे रीति रिवाज और परंपराएं कैसे बनती है? हम कैसे किसी भी परंपरा के शुरू होने का उद्देश्य जाने बिना उस परंपरा से चिपके रहते है? यह मैं एक छोटी सी झेन कथा के जरिए बताना चाहती हूं।
एक साधु ने एक बिल्ली पाल रखी थी। बिल्ली चौबीसों घंटे साधु के आसपास ही मंडराती रहती, कभी कभी तो उनकी गोद मे आकर बैठ जाती। इससे साधु महाराज ध्यान नहीं लगा पाते। एक दिन उन्होंने ध्यान लगाने से पूर्व बिल्ली को एक रस्सी से खूंटी से बांध दिया। पहले एक दो दिन तो बिल्ली ने थोड़ा शोर किया लेकिन बिल्ली के भी समझ मे आ गया कि ये वक्त साधु महाराज के ध्यान करने का है। तो जब भी साधु महाराज बिल्ली को रस्सी से बांधते तो बिल्ली शांत बैठी रहती।
साधु महाराज के शिष्यों ने देखा कि साधु महाराज जब भी ध्यान लगाने बैठते है तो ध्यान लगाने से पूर्व बिल्ली को जरूर बांधते है। कुछ दिनों के बाद साधु महाराज की मृत्यु हो गई और उस बिल्ली की भी मृत्यु हो गई। साधु महाराज के शिष्य जब ध्यान लगाने बैठने लगे तो उन्हें लगा कि हमारे गुरुजी तो ध्यान लगाने से पूर्व बिल्ली को बांधते थे। शिष्यों के पास तो बिल्ली थी ही नहीं। तब शिष्यों ने कहीं से बिल्ली ढूंढ कर लाई, उसे बांधा फिर ध्यान करने बैठे!
दोस्तों, शिष्यों ने बिना यह जाने कि उनके गुरु ध्यान से पूर्व बिल्ली को क्यों बांधते थे, हमारे गुरु ऐसा करते थे...इसलिए हमें भी करना है यह सोच कर ध्यान से पूर्व बिल्ली को बांधना शुरू किया। वास्तव में ध्यान लगाने का और बिल्ली का दूर दूर तक कहीं कोई संबंध नहीं है। सिर्फ वो बिल्ली पालतू थी, चौबीसों घंटे आसपास मंडराती थी, उसके कारण ध्यान में बाधा न पड़े इसलिए साधु महाराज उसे बांधते थे। लेकिन उनके शिष्य इसे अपने गुरु की परंपरा समझ, गुरु भक्ति में अंधे होकर बिना मतलब की परंपरा से चिपक गए।
रीति रिवाज और परंपरा के मामले में हम लोगों के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। किसी भी रीति रिवाज का बिना कोई कारण जाने हम उस परंपरा को धर्म के नाम से, कुछ अशुभ न हो इस डर से, हर जायज नाजायज परंपरा का पालन करते है।
ऐसी ही एक परंपरा चली आ रही है कि अमावस्या के दिन बाल नहीं धोना चाहिए। नहीं तो अशुभ होता है। मुझे एक बात बताइए कि क्या आप हाथ पैर धोने के लिए कभी सोचती है? नहीं न! जैसे हाथ पैर शरीर के अंग है वैसे ही सर के बाल भी शरीर का एक भाग ही तो है न! फिर बाल धोने के लिए इतने सारे नियम, कानून और कायदे क्यों? मैं यह नहीं कह रही हूं कि हमारे धर्मशास्त्र गलत है। उस वक्त की परिस्थितियां कुछ वैसी रहीं होगी। जैसे हो सकता है कि कड़ाके की ठंड पड़ रही हो और किसी महिला ने बाल धोने का सोचा हो। तब उसकी मम्मी ने सोचा होगा कि इतनी ठंड में बाल धोने से मेरी बेटी को सर्दी न लग जाएं। यह सोचकर उन्होंने अपनी बेटी को बाल धोने से मना किया हो। और संयोगवश उस दिन अमावस्या हो। ऐसे में बेटी ने सोच लिया कि अमावस्या को बाल नहीं धोना चाहिए।
कई हिंदू परिवारों में अमावस्या के दिन ब्राम्हण को भोजन करवाते है। जाहिर है कि अमावस्या के दिन काम ज्यादा रहेगा। ऐसे में हो सकता है कि किसी सास ने सोचा होगा कि यदि आज अमावस्या के दिन बहू बाल धोएगी तो खाना बनाने में देरी हो जाएगी। तब बहू को अमावस्य के दिन सास ने बाल धोने मना किया होगा बाद में बहू ने सोचा कि अपने परिवार में अमावस्या के दिन बाल नहीं धोते है।
ऐसा भी हो सकता है कि अमावस्या के दिन किसी महिला ने बाल धोये होंगे और उसी दिन उसके भाई, पिता या पति के साथ कुछ अनहोनी हुई होगी। ये तो वैसे ही हुआ न कि कौए का बैठना और डाल का टूटना। अब कौए के बैठने से डाल थोड़े ही टूट सकती है? अतः जरा सोचिए, मन में अंधविश्वास न पालें। मेरा यकीन कीजिए। अमावस्या को या ऐसे किसी भी दिन सर के बाल धोने से कुछ भी अशुभ नहीं होगा। मैं खुद भी जब चाहे तब बाल धो लेती हूं। मेरे साथ कुछ भी अमंगल नहीं हुआ है। आप अपनी सुविधानुसार जब चाहे बाल धो लीजिए।
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