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शिव के प्रतिमा की पूरी परिक्रमा और शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों कि जाती है? जानिए धार्मिक और वैज्ञानिक कारण...


प्रत्येक देवी-देवता की परिक्रमा करने के अलग अलग नियम होते हैं। शास्त्रों में भगवान शिव की परिक्रमा करने के भी नियम बताए गए हैं। जिसके अनुसार शिव जी की प्रतिमा की तो पूरी परिक्रमा कर सकते हैं लेकिन शिवलिंग की केवल आधी परिक्रमा ही की जाती है। यदि इन नियमों का उल्लंघन किया जाए तो परिक्रमा का फल प्राप्त नहीं होता है और आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जानते हैं कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा क्यों की जाती है क्या इसका धार्मिक और वैज्ञानिक कारण... 

पहले जानते है धार्मिक कारण... 
एक बार देवताओं के सामने जब ये प्रश्न आया कि सबसे पहले किसकी पूजा की जाएगी तो भगवान शिव ने कहा जो सबसे पहले संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा लगा लेगा वही इस सम्मान को प्राप्त करेगा। भगवान शिव का आदेश मिलते ही सभी देवता अपने अपने वाहनों पर सवार होकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े। लेकिन गणेश जी ने अपनी बुद्धि और चतुराई से अपने पिता भगवान शिव और माता पार्वती की तीन परिक्रमा पूरी की और हाथ जोड़ कर खड़े हो गए। माता पिता की तीन परिक्रमा को तीनों लोकों की परिक्रमा के बराबर माना गया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गणेश जी से कहा कि तुमसे बड़ा बुद्धिमान इस संसार में और कोई नहीं है। अब से हर जगह सबसे पहले तुम्हें ही पूजा जाएगा। 

तब पार्वती जी ने कहा,"देवाधिदेव महादेव, आपने गलती कर दी। गणेश जी को प्रथम मान लिया। आपका एक बेटा बुद्धि का प्रयोग कर प्रथम आ गया। लेकिन जब दूसरा बेटा कार्तिकेय मोर की सवारी से परिक्रमा करके वापस आएगा तो वो दुखी होगा। आप बहुत भोले हो। आपकी कोई भी पूरी परिक्रमा करेगा और आपसे कुछ भी मांगेगा तो आप दे देंगे। रावण ने सोने की लंका मांगी और आपने दे दी थी। इसलिए आज मैं आपसे एक वर मांगती हूं।" 

शंकर जी ने कहा,"मांगो पार्वती, कौन सा वर चाहिए?" माता पार्वती ने कहा,"आज के बाद कोई भी आपकी पूरी परिक्रमा नहीं करेगा। यदि कोई पूरी परिक्रमा करेगा तो उसका किया हुआ सारा पुण्य नष्ट हो जाएगा।" शिवजी ने कहा,"तथास्तु।" तभी से शिव जी की आधी परिक्रमा होने लगी। 

जलाधारी या सोमसूत्र किसे कहते है और जलाधारी को क्यों नहीं लांघना चाहिए? 
शास्त्रों में बताया गया है कि शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा पुरूष का प्रतिनिधित्व करता है और नीचले हिस्से को स्त्री का प्रतीक माना गया है। इस तरह से शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग पर अभिषेक करने के बाद जिस स्थान से जल प्रवाहित होता है इसे जलधारी, निर्मली या फिर सोमसूत्र कहा जाता है। माना जाता है कि शिवलिंग से ऊर्जा का प्रवाह होता है, जब उस पर जल चढ़ाया जाता है तो जल में शिव और शक्ति की उर्जा के कुछ अंश समाहित हो जाते हैं, इसलिए जब कोई परिक्रमा करते समय या फिर अनजाने में जलधारी को लांघ लेता है तो उसके पैरों के मध्य से होते हुए ऊर्जा शरीर में प्रवेश कर जाती है जिसके कारण व्यक्ति को वीर्य या रज संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। 

वैज्ञानिक कारण
जलाधारी न लांघने का या शिवलिंग की पूरी परिक्रमा न करने के वैज्ञानिक कारणों को समझने का प्रयास करें तो शिवलिंग ऊर्जा शक्ति का भंडार होते हैं और इनके आसपास के क्षेत्रों में रेडियो एक्टिव तत्वों के अंश भी पाए जाते हैं। काशी के भूजल में यूरेनियम के अंश भी मिले हैं। यदि हम भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप देखें तो पता चलेगा कि परमाणु केंद्रों के अलावा भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के पास रेडिएशन पाए जाते है। यदि आपने एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार पर गौर किया हो, तो शिवलिंग के आकार और एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार में आपको समानता नजर आएगी। ऐसे में शिवलिंग पर चढ़े जल में इतनी ज्यादा ऊर्जा होती है कि इसे लांघने से व्यक्ति को बहुत नुकसान हो सकता है। इसीलिए शिवलिंग की जलाधारी को लांघने की मनाई की गई है। इन स्थितियों में लांघ सकते हैं सोमसूत्र कहीं-कहीं पर शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल सीधे भूमि में चला जाता है या कही कहीं जलाधारी ढकी हुई होती है। ऐसी स्थिति में शिवलिंग की पूरी परिक्रमा की जा सकती है। यानी ऐसे में जलाधारी को लांघने में दोष नहीं लगता है। 

शिवलिंग की परिक्रमा कैसे करना चाहिए? शिवलिंग की परिक्रमा को अर्धचंद्राकार करना शास्त्र संवत माना गया है। अर्धचंद्राकार यानी गोल घूमते हुए आधी परिक्रमा करना। शिवलिंग की परिक्रमा करते समय दिशा का ध्यान रखना भी बहुत आवश्यक होता है। शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बायीं ओर से आरंभ करके जलधारी तक जाकर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरी ओर से फिर से परिक्रमा पूर्ण करें। इस बात का ध्यान रखें कि शिवलिंग की परिक्रमा कभी भी दायीं ओर से नहीं करनी चाहिए। 

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