हिन्दू समाज में शादी में तोरण मारने की एक आवश्यक रस्म है। जो सदियों से चली आ रही है। लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते कि यह रस्म कैसे शुरू हुई। दंत कथानुसार कहा जाता है कि एक तोरण नामक राक्षस था जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था तथा दूल्हा जब द्वार पर आता तो उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था।
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एक बार एक राजकुमार जो विद्वान एवं बुद्धिमान था शादी करने जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था अचानक उसकी नजर उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत तलवार से उसे मार गिराया और शादी संपन्न की।
बताया जाता है कि तब से ही तोरण मारने की परंपरा शुरू हुई अब इस रस्म में दुल्हन के घर के दरवाजे पर लकड़ी का तोरण लगाया जाता है, जिस पर राक्षस के प्रतीक के रूप में एक तोता होता है। बगल में दोनों तरफ छोटे तोते होते हैं। दूल्हा शादी के समय तलवार से उस लकड़ी के बने राक्षस रूपी तोते को मारने की रस्म पूर्ण करता है।
गांवों में तोरण का निर्माण खाती करता है, लेकिन आजकल बाजार में बने बनाए सुंदर तोरण मिलते हैं, जिन पर गणेशजी व स्वास्तिक जैसे धार्मिक चिह्न अंकित होते हैं और दूल्हा उन पर तलवार से वार कर तोरण नाम के राक्षस को मारने की रस्म पूर्ण करता है। यानी दूल्हा राक्षस की जगह गणेशजी या धार्मिक चिन्हों पर वार करता है जो कि भारतीय परंपरा और धार्मिक दृष्टि से उचित नहीं है।
एक तरफ हम शादी में गणेश पूजन कर उनको रिद्धि-सिद्धि सहित शादी में पधारने का निमंत्रण देते हैं और दूसरी तरफ तलवार से वार कर उनका अपमान करते हैं, यह उचित नहीं है।
दूसरी किंवदंती के अनुसार एक राजकुमारी जब छोटी थी तो उसकी मां कहा करती थी कि मेरी चिडिय़ा जैसी बिटिया, बड़ी होने पर किसी दिन कोई चिड़ा आ कर तुझे ले जाएगा। पास ही पेड़ पर बैठा चिड़ा यह सुना करता था।
एक दिन यह देख कर वह अचंभित रह गया कि राजकुमारी की शादी होने जा रही है और एक राजकुमार उसके दरवाजे पर खड़ा है। निराश हो कर उसने राजा के सामने फरियाद की। राजा ने रानी से पूछताछ की तो चिड़े की बात सही निकली। इस पर रानी ने कहा कि वह तो यूं ही प्यार में कहा करती थी, इसका अर्थ ये तो नहीं कि सच में वह अपनी बेटी की शादी किसी चिड़े से करवाएगी।
राजा ने जब अपनी बेटी की शादी चिड़े से करवाने से इंकार कर दिया तो वह अपने समुदाय को इकट्टा करके युद्ध पर उतारू हो गया। युद्ध में राजा हार गया। जैसे ही वह राजकुमारी को ले जाने लगा तो प्रजा ने देवताओं से विनती करी और कहा की इस समस्या का समाधान करे। क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो यह मानव जाति के लिए शर्म की बात होगी, भला चिड़िया और आदमी का विवाह कैसे हो सकता और वंश भी कैसे बढ़ेगा?
काफी समझाने के बाद अंत में चिड़िया प्रजाति को यह समझ आ गया कि राजकुमारी को अपने साथ ले जाने में उनकी भलाई नहीं है। चिड़ा भी मान गया था और बोला कि वह राजकुमारी को अपने साथ नहीं ले जायेगा लेकिन उसने कहा कि रानी को अपने गलत वचन और उसे धोखे में रखने की सजा जरूर मिलनी चाहिए। इसलिए दूल्हे को चिड़ा और उसकी प्रजाति से क्षमा मांग कर उनके पैरो के नीचे से होकर गुजरना होगा। इसे सबने स्वीकार किया। बाद में लकड़ी के तोरण पर चिडिय़ाएं बना कर दूल्हा उनके नीचे से गुजरने लगा। इस तरह यह परंपरा बनी।
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