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लघुकथा- बेटियां किसी से कम नहीं होती!


इस साल का ''स्टुडेंट ऑफ द इयर'' अवार्ड जाता है हमारी सबकी चहेती बैडमिंटन की इंटरनेशनल प्लेयर...'' स्टेज से इतनी घोषणा होते ही दर्शक दीर्घा से हेमा...हेमा...हेमा...की आवाजें आने लगी! उद्घोषक ने अपना वाक्य पूरा किया,''हेमा देशमुख को।" 
आगे उन्होंने बताया,''हेमा MCA में यूनिवर्सिटी टॉपर भी है! उसकी यह कामयाबी इसलिए ज्यादा मायने रखती है क्योंकि वो एक बहुत ही गरीब तबके से आती है। उसने अभी तक किसी प्रकार की कोई ट्यूशन नहीं लगाई थी। कॉलेज टाइम के बाद धनोपार्जन के लिए वह कपड़े प्रेस करने का कार्य करती है। ये हम सबके लिए और हमारे कॉलेज के लिए गौरव की बात है कि इतनी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हेमा हमारे कॉलेज की छात्रा है!" पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंज उठा। 

स्टेज पर जाने के बाद हेमा ने सबका अभिवादन करके कहा,''मेरी सफलता का श्रेय मैं मेरी मम्मी को देती हूं, जो एक दिहाडी मजदूर है। वह खुद अनपढ है लेकिन उन्होंने हमेशा मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। वे मेरी जन्मदाता नहीं है लेकिन मेरे लिए वे जन्मदाता से भी बढ़कर है। उन्हें कोई संतान नहीं थी। उन्होंने मुझे मेरे चाचा से गोद लिया। मेरे चाचा जी को दो बेटे और एक बेटी थी। मेरे पापा बेटा गोद लेना चाहते थे। लेकिन बेटा देने चाचा-चाची तैयार नहीं हुए। तब मम्मी ने कहा कि उन्हें तो बेटी ही होना! इस तरह उन्होंने मुझे गोद लिया। उन्होंने कभी भी मुझे बेटे से कम नहीं, ज्यादा ही समझा! मैं यह सब आप लोगों को इसलिए बता रही हूं ताकि आपको मेरी माँ की महानता के बारे में पता चले। जिनकी सोच, अनपढ़ होने के बावजूद इतनी उच्च है! उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के, खुद मजदूरी करके मुझे पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद में भी इस मुकाम तक पहूंचाया। मम्मी, आप यहां आइए। इस अवार्ड की असली हकदार तो आप ही है!'' 

हेमा की मम्मी सकुचाती हुई, घबराती हुई स्टेज पर आती है। उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि इतने सारे लोगों के सामने उसे इतना सम्मान मिलेगा! स्टेज पर आने पर हर्षातिरेक में उन्होंने हेमा को गले से लगा लिया। दोनों माँ-बेटी के आंखों से अश्रुधारा बह रही थी। वहां पर हेमा को जन्म देने वाले माता-पिता भी बैठे थे। हेमा के चाचा ने अपनी पत्नी से कहा,''काश, हमने ये समझा होता कि बेटियां किसी से कम नहीं होती! हमने बेटी को कमतर न आंका होता! क्योंकि उनके दोनों बेटे आवारा जो निकले थे!! 

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