भारत में शिक्षा के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा गरीबी है। गरीबी की वजह से ही बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में lowest Literacy rate है। हालांकि भारत में कई ऐसे स्कूल हैं जहां बिना फीस लिए ही बच्चों को पढ़ाया जाता है, लेकिन मैं जिस स्कूल के बारे में आपको बता रही हूँ वहां फ़ीस तो ली जाती है, लेकिन फीस में पैसे नहीं, बल्कि बच्चे कचरा देते है। आइये, जानते हैं इस अनोखे स्कूल के बारे में...
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वो स्कूल जहां फीस में पैसा नहीं कचरा दिया जाता है (School which takes garbage instead of fee)
ये स्कूल पिछड़ा कहे जानेवाले राज्य बिहार के बोधगया के सेवाबीघा गांव में है। इस स्कूल का नाम है पद्मपानी स्कूल (Padmapani School in Bihar) है। ये स्कूल Padampani Educational and Social Foundation नाम की संस्था चलाती है। ये स्कूल 2014 में शुरू हुआ था। यहां कक्षा 8 वीं तक की पढाई होती है और यहां क़रीब 250 बच्चे पढ़ते हैं। बच्चों से फीस के बदले प्लास्टिक कचरा लेने की शुरुआत 2018 में हुई। ये स्कूल इसलिए ख़ास है क्योंकि यहां बच्चे फीस में पैसे नहीं, बल्कि कचरा देते है। इस तरह बच्चों को साफ-सफाई और पर्यावरण के प्रति जागरूक करने की कोशिश की भी जाती है। इस स्कूल के छात्र अपने घरों से और सड़क पर का कचरा उठाकर स्कूल लाते है और स्कूल के गेट के पास रखे डस्टबिन में डालते है। बच्चों को कचरा बिनते देख कर माता-पिता और अन्य लोग भी पर्यावरण के प्रति जागरूक होते है।
इस स्कूल की एक खास बात और है। यहां मौजूद सभी उपकरण सोलर एनर्जी से चलते है। छात्रों ने अब तक लगभग 700 पौधे भी लगाए हैं जो अब वृक्ष बन गए है। इस मुहिम पीछे का मुख्य कारण पर्यटन स्थल बोधगया का होना है। यहां हर दिन देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इसलिए इस स्कूल ने योजना बनाई कि बोधगया को स्वच्छ व सुंदर कैसे बनाया जाए। प्लास्टिक पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है और इससे जलवायु परिवर्तन होता है। लिहाजा प्रदूषण को कम करने के लिए स्कूल द्वारा ऐसी पहल की गई है। स्कूल का उद्देश्य ऐतिहासिक धरोहर के आसपास सफाई बनाए रखना भी है। इतना ही नहीं इस स्कूल में 10वीं पास बेरोजगार लड़कियां और महिलाओं को नि:शुल्क सिलाई का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
सिर्फ़ कचरा लेकर स्कूल का खर्चा कैसे चलता है?
छात्र-छात्राएं हर महीने जो (लगभग 65 किलो) प्लास्टिक कचरा लाते है उसे जमा करके रिसाइकल करने के लिए भेजा जाता है। इससे जो भी पैसा आता है उसे बच्चों की शिक्षा, खाना-पीना, यूनिफ़ॉर्म, किताब-कॉपियों आदि पर खर्च किया जाता है। सोचिए एक पिछड़ा कहलाने वाले राज्य बिहार में इस तरह की पहल हो सकती है तो देश के अन्य स्कूलों में क्यों नहीं हो सकती? आज कई ऐसे प्राइवेट स्कूल है जो बच्चों से मनमानी फीस लेते है! काश, पदमपानी स्कूल से अन्य स्कूल प्रेरणा लेकर इस तरह की कुछ सकारात्मक पहल करे ताकि हमारा पर्यावरण प्रदूषित न होकर सही मायने में हम स्वच्छ और सुंदर भारत का निर्माण कर सके और गरीब से गरीब बच्चे को भी शिक्षा मिल सके!!
दोस्तों, मेरे कुछ साथी ब्लोगर्स ने मुझे सलाह दी थी इस तरह की पोस्ट लोग ज्यादा पढ़ना ही नहीं चाहते इसलिए हम ऐसे विषयों पर लिखते ही नहीं है! आप भी लिखा मत करो!! लेकिन हमारा मीड़िया तो ऐसी सकारात्मक ख़बरे दिखाता ही नहीं! यदि हम ब्लॉगर्स भी हमारे देश में जो कुछ अच्छा हो रहा है...जो हम सभी के लिए प्रेरणादायक है...जिससे प्रेरणा लेकर ज्यादा न सही कुछ लोग तो थोड़ा बहुत सीख सकते है...तो क्या हमें ऐसे विषयों पर नहीं लिखना चाहिए? क्या समाज को कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिले हमें ऐसा नहीं लिखना चाहिए? क्या हम ब्लॉगर्स सिर्फ़ अपने पृष्ठदृश्य बढाने के लिए, लोकप्रिय होने के लिए ही लिखते है? समाज के प्रति हमारी कोई जबाबदेही नहीं है? कृपया अपने विचार टिप्पणी द्वारा जरूर बताइएगा...
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