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कहानी- पूर्वाग्रह


घर के सामने बीएमडब्ल्यू के रुकने की आवाज सुनकर छोटे भाई शरद ने आश्चर्यचकित होकर मुझे आवाज लगाई,"शिल्पा दी, देखो तो अपने यहां बीएमडब्ल्यू से कौन आ रहा है?" 
"अपने यहां और बीएमडब्ल्यू से? सपना तो नहीं देख रहा है तू?" 
"दीदी, सही में गाड़ी बस अभी रुक ही रही है। देखो तो..." मैं भी अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पाई क्योंकि एक मध्यमवर्गीय परिवार के दरवाजे पर बीएमडब्ल्यू... हो ही नहीं सकता। इसलिए बालकनी में आकर देखने लगी। 
''अरे, ये बीएमडब्ल्यू तो सचमुच अपने घर के सामने ही रुकी है!'' 

उत्सुकतावश देखने लगी कि गाड़ी में से कौन बाहर आता है। आनेवाले को रिसिव करने मुझे जाने की जरूरत नहीं थी क्योंकि मम्मी-पाप नीचे ही थे। वो रिसीव कर लेंगे। मैं और शरद दूसरी मंजिल पर की बालकनी से देख रहे थे। गाड़ी में से मिसेस दिपाली (एस पी ग्रुप एंड इंडस्ट्रीज की एम डी) नीचे उतर रही थी। मिसेस दिपाली को अपने गरीबखाने मे आते देख कर मुझे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। इतनी बड़ी हस्ती...हमारे यहां क्यों आ रही है? कुछ समझ में नहीं आ रहा था। लेकिन मन ही मन उन्हें घर में आते देखकर एक अजीब सी खुशी महसूस हो रहीं थी। मैं और शरद लगभग दौड़ते हुए नीचे आ गए। हमें ऐसा लगा कि सीढ़िया उतर कर नहीं, हम लोग तो एक्सेलेटर से नीचे आए हो! 

मिसेस दिपाली को देख कर मम्मी-पापा भी अचंभित हो गए। आदर सहित उन्हें अंदर आने कहा। वे सोफे पर बैठ भी गई। लेकिन अभी भी हम सभी को उनसे क्या बात करे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तब उन्होंने ही कहा,"यकीनन मुझे यहां देख कर आप लोग आश्चर्यचकित हो गए होंगे। शायद आप मुझे नहीं जानते होंगे लेकिन मैं आप लोगों को जानती हूं...विशेषकर शिल्पा को!" मैं और मेरे घर वाले सभी सोचने लगे कि आखिरकार वो मुझे कैसे पहचानती है? 

"आपको तो शहर का बच्चा-बच्चा पहचानता है! लेकिन आप शिल्पा और हमको कैसे पहचानती है और आप हमारे यहां? आपसे मिलने तो लोगों को अपॉइमेन्ट लेनी पड़ती है...ऐसे में आप खुद...कुछ समझ में नहीं आया।" पापा ने कहा। 
''देखिए मेरे बेटे पंकज ने JCI में शिल्पा को एक बार ''हरदम हिंदुओं के व्रत-त्योहारों पर ही सवाल क्यों उठाएं जाते हैं" इस विषय पर हुई वकृत्व स्पर्धा में सुना था। उसकी वाकपटुता, संबंधित विषय पर पकड़, अपनी बात समझाने का शिल्पा का तरीका पंकज को बहुत पसंद आया। खासकर इतने संवेदनशील विषय पर जिस तरह उसने अपने पॉइंट्स रखे ताकि किसी की भावनाएं आहत भी न हो और कहने का तात्पर्य सभी के समझ मे आ जाए वो देख कर तो पंकज शिल्पा का फैन हो गया। उसने सोशल मीडिया पर शिल्पा को सर्च किया तब उसे पता चला कि वो इंजीनयर के साथ साथ एक ब्लॉगर भी है। उसने शिल्पा की बहुत सारी पोस्ट्स पढ़ी। पोस्ट्स पढ़ने के बाद उसने मुझे शिल्पा के बारे में बताया। मैं ने भी उसकी पोस्ट्स पढ़ी। मुझे भी उसके विचार बहुत पसंद आए। हमने शिल्पा के ऑफिस वालों से भी जानकारी ली। सभी ने शिल्पा की बहुत तारीफ की। इसलिए मैं चाहती हूं कि यदि आप लोगों को ये रिश्ता थोड़ा भी जंचता हो और यदि आपको उचित लगे तो पंकज एवं शिल्पा एक दूसरे से मिल ले। आपस मे एक दूसरे को जान ले। और यदि दोनों की हां है तो हम बात आगे बढ़ाए। देखिए, आपको अभी की अभी अपनी राय देनी है मैं ऐसा नहीं कह रही हूं। आप लोग आराम से आपस में विचार विमर्श कर लीजिए फ़िर एक-दो दिन में मुझे सुचीत कर दीजिए। यदि आपकी हां है तो दोनों बच्चे आपस में मिल कर एक दूसरे को समझ लेंगे...फ़िर जैसी बच्चों की राय हो...'' 
''जी...हम आपको सूचित कर देंगे।'' पापा ने कहा। 

इतनी देर में मम्मी ने नाश्ते के लिए मुझे इशारा कर दिया था। मैं दो-तीन तरह के पकौड़े बना कर और साथ ही में मिठाई लेकर आई। उन्होंने पकौड़ो की बहुत तारीफ़ की और कहा, शिल्पा के जैसे विचार अच्छे है वैसे ही उसने पकौड़े बहुत ही स्वादिष्ट बनाएं है। भई, मुझे तो शिल्पा पसंद है...बस, बच्चे आपस में एक-दूसरे को पसंद कर ले...थोड़ी देर परिवार और इधर-उधर की बातचीत के बाद वे चली गई। उनके जाने के बाद पापा-मम्मी ने मेरी राय जाननी चाही। उन्होंने कहा कि उनको तो यह रिश्ता जंच रहा है। क्योंकि बात उनके पैसे वाले होने की नहीं है...बात ये है कि पूरे शहर में लोग उनको इज्जत की नजर से देखते है...उन्हें पैसों का घमंड तो बिल्कुल नहीं है...उनका परिवार हरदम सामाजिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता है...किसी जरूरतमंद की मदद करने के लिए वे हमेशा आगे रहते है। अब तू अपनी राय बता। यदि तू हां कह दे तो हम मिसेस दीपाली को हां कर दे। 

इतने अच्छे रिश्ते से मुझे क्या एतराज हो सकता था? वैसे भी उन्होंने सीधे-सीधे मेरा हाथ नहीं मांगा था। यदि वे ऐसा करती तो शायद मैं ना कहती। क्योंकि उस परिस्थिति में यह साबित हो जाता कि उन्हें मेरी भावनाओं की कद्र नहीं है। लेकिन उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि बच्चे आपस में मिल कर फ़िर निर्णय लेंगे। उनकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी थी। मैं और पंकज तीन-चार बार मॉल और बगीचे आदि में मिले। एक लड़की को अपने होने वाले पति में जो-जो खुबियां चाहिए होती है, वो सब पंकज में थी। पंकज से मिल कर मुझे ऐसा लगा कि ये ही मेरे सपनों का राजकुमार है। एकदम सुदर्शन व्यक्तित्व का धनी...जितना सुंदर उतना ही उसके विचारों में परिपक्वता झलकती थी। 

जल्द ही हम दोनों ने अपने-अपने परिवार वालों को अपनी 'हां' से परिचित करवा दिया। यह बात मेरे ऑफिस में पता चलने के बाद मैं अपने सहयोगियों के साथ कैंटीन में बैठी थी। सब मुझे बधाई दे रहे थे। इतने में मेरी पक्की सहेली पायल बोली, "वैसे तो सब ठीक है लेकिन..." पायल के ऐसा कहते ही मैं ने अधीरता से पूछा, ''लेकिन क्या?" 
''अरे कुछ नहीं। वो तो ऐसे ही मुंह से निकल गया।" 
"जब मुंह से निकल गया तो तुझे बताना भी पड़ेगा। बता, लेकिन क्या...'' 
"देख वैसे तो सब अच्छा ही अच्छा है। लेकिन तेरी होने वाली सास मतलब मिसेस दीपाली पूरे ऑफिस में अपने कड़क स्वभाव के बारे में जानी जाती है।'' पायल ने कहा। 
''हां यार...ये बात तो है! सुना है कि उन्हें हर काम वक्त पर चाहिए। यदि किसी एम्पलाई ने काम वक्त पर पूरा नहीं किया तो वे बहुत गुस्सा होती है। सभी एम्पलाई उनसे डरते है,थर-थर कांपते है। यदि ऑफिस में ये हाल है तो घर पर तो वो तेरी सास है। क्या वो घर पर अपना सास वाला रूप नहीं दिखाएगी? शिल्पा तू तो फंस गई!! कहा जाता है कि यदि पति से गुण नहीं मिले तो चल जाएगा लेकिन सास के साथ गुण जरूर मिलना चाहिए। तभी वैवाहिक जीवन खुशहाल रह सकता है!!" रेणु ने कहा। 

अब पायल और रेणु की बातें मेरे कानों में गूंजने लगी। मारे घबराहट के मेरी भूख प्यास ही गायब हो गई। पंकज के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर मैं मन ही मन उसे चाहने लगी थी। अब मैं किसी भी हालत में पंकज को खोना नहीं चाहती थी लेकिन मन में डर समा गया था कि यदि सच में मिसेज दीपाली ने अपना सास वाला रूप दिखाया तो? मुझे तंग किया तो? कहीं सिरियलो और पिक्चरों वाली सास की तरह वे भी पंकज के सामने मेरे से अच्छी से रही और पंकज के पीछे से मुझे ताने मारे तो? ये इंसान का मन भी न बहुत ही अजीब होता है! सौ अच्छी बातों की तरफ़ उसका ध्यान नहीं जाता लेकिन एक बूरी बात बार-बार उसके मन को कचोटती है। मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही हो गया था। मिसेस दिपाली की सौ अच्छी बातें मुझे नजर नहीं आ रही थी और पायल एवं रेणु द्वारा कही गई बात मुझे कांटों की तरह चुभ रही थी। 

मैं इसी उधेड़बुन में खोई हुई थी कि मम्मी की आवाज सुनाई दी, ''शिल्पा, चल खाना खा ले।'' मम्मी की आवाज सुन कर मैं बाहर आ गई। मेरा चेहरा देख कर मम्मी पहचान गई कि मैं किसी बात से परेशान हूं। ईश्वर ने इन मम्मियों को न जाने ऐसी कौन सी शक्ति से नवाजा है कि सब मम्मियां बच्चों के बिना कुछ कहे ही अपने बच्चों के मन की बात जान जाती है। 
"शिल्पा, क्या बात है? तू कुछ परेशान दिख रही है?" 
''नहीं मम्मी, परेशानी की कोई बात नहीं है।'' 
''देख, मैं मम्मी हूं तेरी। तेरी रग-रग को पहचानती हूं मै! अब बता क्या बात है? कहीं पंकज को लेकर तो कोई बात नहीं है न?" मम्मी के इस तरह पूछने पर मुझे रोना आ गया और रोते-रोते ही मैं ने उन्हें सब बता दिया। मम्मी हंसने लगी। 
"मेरी यहां जान पर बनी है और आपको हंसी आ रही है?" 
''देख बेटा, लोगों की सुनी-सुनाई बातों से कई बार हम पुर्वाग्रह से ग्रसित होकर अपने मन में गांठ बांध लेते है। जिससे हमारा आगे का जीवन प्रभावित होता है और हम किसी की अच्छाईयां भी नहीं देख पाते। एक बात हमेशा याद रखना, तुम उस घर में उनकी बहू बनकर जाएगी, एम्पलाई नही! इसलिए किसी की बात पर ध्यान मत दो। वो अन्य सभी के लिए बॉस होंगी,पर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ममतामयी सास होंगी! मैं उनसे सिर्फ़ एक बार ही मिली हूं। लेकिन अपने अनुभवों से कहती हूं कि वे एक ममतामयी सास ही साबित होगी। और कुछ बाते तुम्हारे व्यवहार पर भी निर्भर होगी। मुझे विश्वास है कि तुम उन्हें शिकायत का मौका नहीं दोगी। ऑफिस में बॉस को कड़क बनकर ही रहना पड़ता है तभी कोई भी कंपनी सुचारू रूप से कार्य कर पाती है। खुले मन से बिना किसी पूर्वाग्रह के घर में प्रवेश करो, अपना व्यवहार अच्छा रखो, प्यार दोगी तो प्यार ही पाओगी। मन में भरकर जाओगी तो मनभर जी ही नहीं पाओगी!!" मम्मी के ऐसा कहने पर मेरे मन से सभी प्रकार के आशंका के बादल छट गए। 

''मम्मी, इसलिए ही तो मैं आपको प्रॉब्लम सॉल्वर कहती हूं। जिस सवाल का जवाब गूगल के पास भी नहीं रहता उस सवाल को आप चुटकियों में सॉल्व कर देती हो! लव यू...मम्मी!!" 

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