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लघुकथा- अच्छी ससुराल


सुनिता
की बेटी रीता का रिश्ता तय होने के बाद उसकी पड़ोसन शिल्पा बधाई देने सुनिता के घर आई। 
"बहुत बहुत बधाई हो सुनिता! रीता का रिश्ता तय हो गया है यह जानकर बहुत खुशी हुई।" 
''बहुत भाग्यशाली है हमारी रीता! बहुत ही अच्छी ससुराल मिली है उसे। उसके ससुराल वाले बहुत ही खुले विचारों के है। वे बहू और बेटी में कोई फर्क नहीं करते। उनका कहना है कि बहू जो चाहे वो पहन सकती है...चाहे साड़ी पहने या सलवार सूट...किसी भी प्रकार का कोई बंधन नहीं है। यहां तक कि यदि रीता जींस टॉप पहनना चाहे तो वो भी पहन सकती है! मैं तो ये सोच सोच कर ही परेशान हो रही थी कि हरदम जींस टॉप पहनने वाली मेरी रीता ससुराल में हर वक्त साड़ी में कैसे रहेगी? सच में, रीता को इतनी अच्छी ससुराल मिलने से मैं बहुत खुश हूं।'' सुनिता खुशी के मारे एक ही सांस में सब बोलती गई। 

शिल्पा को याद आया कि जब वो पिछली बार सुनिता के यहां आई थी तो अंदर से आती सुनिता की आवाज सुन कर दरवाजे पर ही ठिठक गई थी। सुनिता अपनी बहू पर गुस्सा हो रही थी कि तुम आटा गूंथ रही थी तो क्या हुआ? तुम्हें ये तो दिख ही गया था न कि तुम्हारे ससुर जी किचन के पास से जा रहे है...तुम अपनी साड़ी का पल्ला कम से कम कंधे पर तो रख ही सकती थी! आखिरकार बड़े बुजुर्गों का थोड़ा बहुत मान-सम्मान तो होना ही चाहिए न? थोड़ा सा आटा साड़ी के पल्लू को लग भी जाता तो कौन सा पहाड़ टूट जाता? बाद में साड़ी का उतना सा भाग धो लेती! लेकिन आजकल की बहुओं को बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना आता ही कहां है? 

शिल्पा मन ही मन सोचने लगी कि सुनिता की बेटी को तो अच्छी ससुराल मिल गई। लेकिन सुनिता की बहू का क्या... 

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