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लघुकथा- कमाई


"प्रतिमा
, तुझे आज फिर देरी हो गई। मैं कब से तेरी राह देख रही हूं। तुझे कितनी बार कहा है कि देरी मत किया कर। लेकिन तू है कि सुनती ही नहीं है।" शिल्पा ने अपनी कामवाली से कहा।  
"भाभी, वो क्या है हमारा टी.वी. आठ दिन से बंद था। मैं घर से निकल ही रही थी तो छत्री सुधारने वाला आ गया। इसलिए देरी हो गई।" 
"क्यों, तेरा आदमी नहीं था क्या घर पर?" 
"वो तो घर पर ही था। लेकिन पी कर पड़ा हुआ था। वैसे भी वो घर पर है या नहीं कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। घर के सभी काम मुझे ही देखने पड़ते है। चाहे किराना लाना हो या सब्ज़ी मैं ही लाती हूं। बच्चों को स्कूल लाना ले जाना हो या अस्पताल सब मैं ही करती हूं।" 
"क्यों, तेरा आदमी कुछ नहीं करता क्या?" 
"उसे पीने से फुर्सत मिले तो कुछ करे न!" 
"वो कभी भी काम पर नहीं जाता क्या?" 
"जाता है कभी कभी। लेकिन जितना भी कमाता है, पूरे पैसे की दारू पी लेता है। कुछ बोलो तो बोलता है कि मैं मेरे कमाई की पी रहा हूं। उसे घर से कोई मतलब ही नहीं है। मेरा पति है और मेरे बच्चों का बाप है इसलिए उसका भी खर्चा मुझे ही करना पड़ता है। दारू तो वो अपने पैसे की पीता है लेकिन भाभी तीन वक्त का खाना मुफ्त में तो नहीं आता न! मेरे मोहल्ले के लोग बोलते है कि वो बहुत किस्मत वाला है जो उसे मेरे जैसी पत्नी मिली जो उसका घर संसार चला रही है। दूसरी कोई होती तो कब की छोड़ के चली जाती। मेरे माँ बाप ने मुझे पढाया नहीं। नहीं तो कुछ ढंग का काम करती। लेकिन कोई बात नहीं। कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता। मैं मेरी कमाई का खाती हूं, ये बात क्या छोटी है? भाभी, एक बात पुछू?" 
"हा, पूछ न!" 
"आप इतनी पढ़ी लिखी है, फिर आप क्यों नहीं कुछ काम करती?" 
"मुझे कमाई करने की क्या जरूरत है? मेरा पति कमाता है न! वो मेरे लिए ही तो कमाता है!"  
"बात तो बराबर है भाभी। भला आपको कमाई करने की क्या जरूरत है। भैया तो कमाते ही है।" 
इतने में बेल बजी। प्रतिमा ने देखा तो कोरियर वाला था। शिल्पा पार्सल खोल के देख ही रही थी उतने में ही उसका पति आ जाता है। शिल्पा के हाथ मे नया डिनर सेट देख कर शिल्पा पर एकदम चिल्लाने लगता है। 
"कितने का आया डिनर सेट?" 
"जी, 1200 रुपए का।" शिल्पा ने डर से कंपकंपाते हुए कहा। 
"तुम्हे पता भी है कि 1200 रुपए कमाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है? इतना महंगा डिनर सेट खरीदने से पहले तुम ने मुझ से एक बार भी पूछना जरूरी नहीं समझा?"  "वो...वो..." 
"ये वो वो क्या कर रही हो? मैंने कितनी बार कहा है कि मुझ से पूछे बिना तुम कुछ नहीं खरीदोगी। कब अक्ल आएगी तुम्हे?" 
शिल्पा चुपचाप अपने आंसू पोछने लगी। तभी बेल बजी। नशे में धूत प्रतिमा का पति था। प्रतिमा को देखते ही वो उस पर चिल्लाने लगा।  
"तेरे को कितनी बार कहा है कि घर जल्दी आया कर। बात तेरी समझ में नहीं आती। घर चल बताता हूं तेरे को।" 
"तू क्या बताएगा रे मेरे को। मेरी ही कमाई खाकर मेरे पर ही गुर्रा रहा है! घर चल मैं ही तेरे को बताती हूं कि मेरे ऊपर गुर्राने का नतीजा क्या होता है!! आती हूं, भाभी।" 
इतना कह कर प्रतिमा चली गई। शिल्पा रात को फाइल में अपने सर्टिफिकेट देख रही थी। कमाई करने की क्या जरूरत है, यह उसे अच्छी तरह समझ में आ गया था। 

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