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कहानी- समाधान...

''मैडम, आज नाश्ते में क्या बनाउं?'' शिल्पा की कामवाली प्रतिमा ने पूछा। ''कुछ भी बना ले। वैसे भी आज कुछ भी खाने का मन नहीं हो रहा।''
''क्या हुआ मैडम तबीयत तो ठीक हैं न आपकी?'' प्रतिमा ने शिल्पा को छूकर देखते हुए पूछा। 
''मैडम बुखार तो नहीं हैं। फ़िर आप इतनी थकी-थकी सी क्यों लग रहीं हैं''
''अरे, कुछ नहीं। आज ऐसे ही मन थोड़ा उदास हैं।'' 
''साहब की याद आ रहीं हैं क्या?'' 
''उनकी याद तो हमेशा आती हैं। जब तक जिंदा हूं उनकी यादों का ही तो सहारा हैं। उनकी यादे मुझे जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। आज उनका स्वर्गवास हुए पांच साल हो गए हैं। उन्होंने जाते वक्त मुझसे वादा लिया लिया था कि मैं उनको याद कर-करके कभी उदास नहीं होउंगी और जिंदगी से कभी हार नहीं मानूंगी। इसलिए...''
''फ़िर आज आप उदास क्यों हैं, बताइए न मैडम?''
प्रतिमा पिछले तीन-चार सालों से शिल्पा के यहां काम कर रहीं थी। स्वभाव भी बहुत अच्छा होने से वो घर के सदस्य की तरह हो गई थी। इसलिए वो बार-बार जोर देकर शिल्पा की उदासी का कारण पूछने लगी। ''क्या बहुत दिनों से अमेरिका से दिपक बाबा का फोन नहीं आया? आप खुद फोन लगाकर बात कर लीजिए।'' 
''नहीं ऐसी बात नहीं हैं। कल ही दिपक और बहू दोनों से बात हुई। वो सब वहां पर मजे में हैं।'' 
''फ़िर क्या बात हैं मैडम?'' 
''कॉलनी की मेरी सभी सहेलियां कहीं न कहीं घुमने जा रहीं हैं। मेरा भी बहुत मन कर रहा हैं कि कहीं घुमने जाउं...लेकिन मैं किसके साथ घुमने जाउंगी? बेटा-बहू अमेरिका में हैं। सिर्फ़ मुझे घुमाने के लिए वे इंडिया थोडे ही आयेंगे? बेटी के ससुराल में बोल नहीं सकती क्योंकि दामाद जी दोस्तों के साथ तो लंबी दूरी पर घुमने जाते हैं लेकिन उनको परिवार वालों के साथ घुमना-फिरना पसंद ही नहीं हैं!'' 
''आप अपनी सहेलियों के साथ क्यों नहीं जाती घुमने? आपकी बहुत सारी सहेलियां हैं और सभी आपको बहुत चाहती भी हैं!'' 
''हां, वो तो हैं। लेकिन कोई सहेली अपने पति और बेटा-बहू के साथ घुमने जा रहीं हैं तो कोई अपने बेटी-दामाद के साथ। कोई तो अपने पूरे परिवार मतलब बेटा-बहू, बेटी-दामाद और बच्चों के साथ घुमने जा रहीं हैं। सबका अपना-अपना परिवार हैं। मेरे अकेली का बेटा ही अमेरिका में हैं। बहुत इतराती थी मैं इस बात पर कि मेरे अकेली का बेटा अमेरिका में हैं। लेकिन सच बताउं तो अब लगता हैं कि काश, मेरा बेटा यहीं होता मेरे पास! हम एक-दूसरे के सु:ख-दु:ख में काम आते! व्हाट्स एप्प पर कितनी भी देर वीडियो कॉल कर लो पर जो मजा एक घर में साथ-साथ रहने में हैं, वो मजा ये उन्नत टेकनिक से भी नहीं मिल सकता! अकेले रहते-रहते अकेलापन सताने लगा हैं। काश, मैंने अमेरिका जाने के लिए दिपक को इजाजत ही नहीं दी होती। यहां अपने देश में क्या दाल-रोटी की कमी हैं? मेरी सहेलियां तो तैयार हैं मुझे अपने साथ घुमाने ले जाने के लिए। लेकिन मुझे ही संकोच होता हैं। मैं उनके साथ कबाब में हड्डी कैसे बन सकती हूं? क्या वो लोग मेरे साथ फ्री होकर घुम पायेंगे?'' 
''हां, ये बात तो हैं!''

''अच्छा, एक बात बता...क्या तेरा मन नहीं करता कहीं घुमने जाने को?'' ''मैडम, जिसके पास दो वक्त की रोटी के लिए भी बराबर पैसे न हो...वो घुमने जाने के लिए पैसे कहां से लायेगा? जब मैं छोटी थी तब ज्यादा समझता नहीं था न...तब बहुत मन करता था कि मैं भी कहीं घुमने जाउं...खासकर उटी जाने के लिए...हमारे पडोस में एक अमीर परिवार रहता था। वे लोग उटी घुम कर आएं थे। उनकी बेटी मेरी पक्की सहेली थी। वो वहां का वर्णन ऐसे करती कि मुझे लगता कि मैं अभी की अभी उटी जाउं...उसने बताया था कि वहां पर बादल हमें बिलकुल हमारे नजदीक से आते-जाते दिखते हैं। उटी में एक-दो जगह ऐसी हैं कि वहां पर तो बादल हमें हमारे नीचे दिखते हैं। सचमुच कितना सुंदर लगता होगा वो दृश्य! मैडम, हमारे यहां से तो बादल कितने दूर दिखते हैं...फिर वहां पर इतने नीचे कैसे आ जाते हैं? खैर, हम गरीब लोग उस दृष्य की सिर्फ़ कल्पना ही कर सकते हैं! मैं छोटी थी तब मेरे माता-पिता दोनों पुलिया के काम पर ईट-मिट्टी आदि ढोने जाते थे। एक दिन अचानक पुल ढह गया और उसके निचे दब कर माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई। इंजिनियर ने पुलिया के काम में सीमेंट-लोहे का इस्तेमाल बराबर नहीं किया और उसकी सजा मेरे माता-पिता को और मेरे जैसे और परिवारों को भुगतनी पड़ी। सब कहते हैं कि जो जैसा करेगा वैसा भरेगा...लेकिन वो इंजिनियर तो आज भी जिंदगी के मजे ले रहा हैं...सब अपने-अपने नसीब की बाते हैं! 

मेरे कोई भाई-बहन नहीं हैं। चाचा मुझे अपने घर ले गए। मेरे चाचा बहुत अच्छे हैं। वो मेरा पूरा-पूरा ख्याल रखते थे। लेकिन चाचा के काम पर जाते ही चाची मेरे से घर का पूरा काम करवाती थी और खाने को भी कुछ नहीं देती थी। मैं दिन भर भुखी रहती थी। रात को चाचा के साथ ही खाना खाती थी। चाचा से भी ये सब बाते छिपी नहीं थी लेकिन घर में शांती रहे यह सोच कर वे चुप रहते। आखिरकार उन्होंने यह सोच कर छोटी उम्र में ही मेरी शादी कर दी कि कम से कम मुझे पेट भर खाना तो मिलेगा! पति शराबी निकला। शादी के चार महीने बाद ही जहरीली शराब पीने से उसकी मृत्यु हो गई। सास-ससूर ने मनहुस कह कर घर से निकाल दिया। तब से लोगों के घर में बर्तन-कपड़ा करके दो रोटी का जुगाड कर रहीं हूं। जब मेरे पास घुमने जाने लायक पैसे ही नहीं हैं, तो उस बारे में सोच-सोच कर मैं अपना खून क्यों जलाउं? प्रतिमा की बात सून कर शिल्पा निरुत्तर हो गई। उसने प्रतिमा को उतप्पम बनाने कहा और खुद कहीं दूर विचारों में खो गई...

दूसरे दिन जब प्रतिमा काम पर आई तो शिल्पा ने उसे उपर के शेल्फ पर से सुटकेस और ट्रॉली बैग उतारने कहा। ''मैडम, क्या आप कहीं घुमने जा रहीं हैं?''
''हां! पर आप कहां और किसके साथ जा रहीं हैं?'' 
''तु सवाल बहुत पूछती हैं। मैं घुमने कहां जा रहीं हूं और किसके साथ जा रहीं हूं ये मैं तुझे अभी नहीं बताउंगी। तु सिर्फ़ सुटकेस उतार दे।'' 
शिल्पा ने प्रतिमा से उनी कपडे, चद्दर आदि सब निकलवाएं। लेकिन हर चीज दो-दो। प्रतिमा के समझ में नहीं आ रहा था कि मैडम के साथ ऐसा कौन जा रहा हैं कि उसके लिए मैडम खुद चद्दर आदि रख रहीं हैं। लेकिन जब मैडम ने बताने से मना कर दिया तो दोबारा कुछ भी पूछने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। शिल्पा ने प्रतिमा की सहायता से रास्ते के लिए नाश्ता बनाया। पूरी तैयारी होने के बाद शिल्पा ने अपनी दो-चार नई साडियां शिल्पा को देते हुए कहा कि ये साडियां तु अपने लिए रख ले। घुमने जायेंगे तो तुझे भी तो अच्छी साडियांं लगेगी।'' 
''मैडम मैं कहां जा रहीं हूं घुमने?''
''तु मेरे साथ घुमने जा रहीं हैं। मैंने बाकि सभी सामान रख लिया हैं। टिकट भी बनवा ली हैं। हमें कल ही निकलना हैं।'' 
''मैडम, आप मुझे अपने साथ घुमने ले जा रहीं हैं? लोग क्या कहेंगे कि आप एक कामवाली बाई के साथ घुमने जा रहीं हैं? कॉलनी में आपकी सहेलियां आपका मजाक उडायेंगी!''
''देख प्रतिमा, इनका स्वर्गवास हो जाने से और बच्चों के पास वक्त न होने से मैं अब बिल्कुल अकेली हो गई हूं। मैंने तुझे बताया था न कि सभी को घुमने जाते देख कर मेरा भी बहुत मन कर रहा था घुमने जाने। लेकिन मैं यहीं सोच-सोच कर परेशान थी कि मुझे कौन ले जाएगा अपने साथ घुमाने? तब बहुत सोचने पर मुझे अपनी समस्या का यहीं उचित समाधान मिला। मुझे तेरा साथ मिल जाएगा और तेरी भी घुमने की सालों की दबी हुई ख़्वाहिश पूरी हो जाएगी। चलेगी न मेरे साथ घुमने?'' 
''लेकिन मैडम हम घुमने कहां जायेंगे? बताउं...तेरी मनपसंद जगह उटी! हां, एक बात और मैं तुझे सिर्फ़ अपना सामान उठाने या अपनी देखभाल करने के लिए ही नहीं ले जा रहीं हूं। हम वहां पर सहेलियां बन कर घुमेंगे, सेल्फी लेंगे और ऐश करेंगे और हां, ये कुछ पैसे रख। पार्लर में जाकर अपने बालों की कटिंग करवाना और अॅब्रो भी करवा लेना। क्योंकि जब मैं सोशल मीडिया याने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर फोटोज डालुंगी तो मेरी सहेली की फोटोज भी तो अच्छी आनी चाहिए न? बोल चलेगी न मेरे साथ?'' 
प्रतिमा ख़ुशी से झुम उठी। उसने कहा, ''मैडम, अंधे को क्या चाहिए? दो आंखे...!!''

अगले दिन जब प्रतिमा तैयार होकर शिल्पा की साड़ी पहनकर आई तो शिल्पा उसे देखती ही रह गई! गजब की सुंदर दिख रहीं थी। उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वो एक कामवाली बाई हैं! सचमुच, सुंदरता भी पैसों की मोहताज होती हैं...प्रतिमा का इतना सुंदर रुप देख कर शिल्पा अपने आप पर काबु नहीं कर पाई...प्रतिमा का हाथ पकड़कर डांस करने लगी...

''शिल्पा के साथ-साथ, शिल्पा के संग-संग...
ओ प्रतिमा चल....
चल मेरे साथ चल तू...शिल्पा के साथ चल तू...''

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