भारतीय उपमहाद्वीप में सदियों से बुराइयों पर अच्छाइयों के विजय के प्रतीकस्वरूप,विजयादशमी के दिन रावण के दहन की प्रथा रही है जो अब तक चली आ रही है.लंका का अधिपति राक्षसराज रावण,धनपति कुबेर का भाई,संस्कृत और वेदों का महापंडित,परम शिवभक्त और शिव-तांडव-स्रोत का रचयिता भी था.वह अपार वैभव ही नहीं अपार शक्ति का भी स्वामी था.
वाल्मीकि के अनुसार,रावण की मृत्यु के उपरांत ,स्वयं श्री राम ने विभीषण से कहा,”राक्षसराज रावण समर में असमर्थ होकर नहीं मरा.इसने प्रचंड पराक्रम किया है.इसे मृत्यु का कोई भय नहीं था.यह देवता रणभूमि में धराशायी हुआ है.
रावण की मृत्यु के बाद उससे सदा तिरस्कृत विभीषण ने श्रीराम से शोक संतप्त स्वरों में कहा,’भगवन,देवताओं से अपराजित रावण आज आपसे युद्ध करके रणभूमि में वैसे ही शांत पड़ा है जैसे समुद्र अपनी तट भूमि पर पहुंचकर शांत हो जाता है.वह महाबली ,अग्निहोत्री,महातपस्वी,वेदांतवेत्ता और यज्ञ कार्यों में श्रेष्ठ था.
नि:संदेह रावण महातपस्वी भी था.पौराणिक आख्यान हमें बताते हैं कि उसने तपस्या कर ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया था. लेकिन उसके मन में जन्मा विकार उसके सर्वनाश का कारण इस कदर बना कि अपनी मृत्यु के उपरांत भी वह उपहास का पात्र बना हुआ है जिसे हम विजयादशमी के दिन उसके दहन के रूप में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं.
रावण के तमाम गुणों पर उसकी एक भूल,अहं की अनुचित पराकाष्ठा, उसके दुर्गुण को ही सामने लाते हैं.कहा जाता है कि वह घोर व्यक्तिवादी और अहं का शिकार था.कैलास को शीर्ष पर उठा लेने के बाद उसके मन में सर्वशक्तिमान हो जाने का अहं जागा था.शिव अपने प्रिय भक्त में मन में आये इस विकार को जान गए थे.उन्होंने अपने अंगूठे के दबाव से रावण को उसकी असमर्थता का भान करा दिया था.एलोरा के कैलास मंदिर में यह प्रसंग शिल्पियों ने पत्थरों पर भी उकेरा है.
रावण को लेकर अनेक कथाएँ हैं.उसके नाम को लेकर भी कई कथाएँ हैं.जैसे रावण का अर्थ है - सारे संसार को रुलाने वाला,जन्म के समय गर्दभ स्वर में रोने वाला या बहुत अधिक चिल्लाने वाला.एक कथा के अनुसार,जब रावण सारी सीमाओं का अतिक्रमण कर गया तो मानवों और देवों ने ईश्वर से उसे दंडित करने की प्रार्थना की.यह प्रार्थना विष्णु तक भी पहुंची.उन्होंने घोषणा की कि अहंकारवश रावण ने जिस मानवीय शक्ति की उपेक्षा की है,वह उसी शक्ति के द्वारा नष्ट भी होगा और इस घोषणा को सिद्ध करने के लिए विष्णु ने राम का अवतार लिया.
अहंकार को मनुष्य के उत्थान की सबसे बड़ी बाधा माना गया है.संतजन कहते हैं कि ज्यों-ज्यों अहंकार मिटता है,व्यक्ति का चित्त निर्मल होने लगता है.व्यक्ति ईश्वर के निकट पहुँचता है.दूसरों से अधिक श्रेष्ठ,शक्तिमान अधिक सम्माननीय बनने की लालसा सबके मन में होती है.रावण ने भी स्वयं को सर्व शक्तिमान समझ लिया था. जो उसके अंत का कारण बना.
मानवीय विकार मनुष्यों की स्वभावगत प्रवृति है लेकिन शुभ संस्कारों के कारण हम इनसे जूझते भी रहते हैं.आदि काल से सद् और असद् प्रवृत्तियों के बीच द्वंद चलता रहता है.रावण इन्हीं असद् और आसुरी प्रवित्तियों का प्रतीक है.
जब तक मनुष्य के मन में सद् और असद् के बीच द्वंद चलता रहेगा तब तक प्रतीकात्मक रूप में रावण भी जीवित रहेगा,वह कभी नहीं मरेगा.यह भी सत्य है कि जब तक रावण नहीं मरता,तब तक राम का आदर्श भी धुंधला नहीं हो सकता.