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मुझे क्या होना चाहिए?


मैं दर्द होता तो
आपकी आंखों से बहकर
अपना अस्तित्व समाप्त करना चाहता
उस खारे आंसू की तरह जो
देश दुनिया की फिक्र से दूर बच्चों की
आंखों से निश्चल बहा करता है।


मैं खुशी होता तो
आपकी मुस्कुराहट के रूप में
होठों पर बिखरना चाहता
उसी स्वच्छंद
रूप में जब कोई नन्हा शावक
मृगया कर लौटी शेरनी का मुंह चाटता है।


मैं संगीत होता तो
खनखनाकर बजना चाहता
किसी भिखारी के कटोरे में गिरने वाले
उस सिक्के की तरह जिसका कोर्पोरेट जगत
में तो कोई मोल नहीं, लेकिन उस बदहाल
कटोरे के मालिक के लिए बहुतेरा है।


मैं खामोशी होता तो
हमेशा दिखना चाहता कभी
उन नेताओं उशृंखल के चेहरों पर जो
शिक्षकों और उनकी बीवियों पर अश्लील कटाक्ष
करते वक्त भूल जाते हैं अपनी औकात।


मैं क्या हूं
शायद सवाल बहुत बड़ा है
और शब्दों का अस्तित्व थोड़ा।
अब आप थोड़ा सा बता दीजिए
मुझे क्या होना चाहिए।


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