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"जब चौराहे पर खड़ा था मैं"_Hindi Poetry 2019_Ankit AKP

"चौराहे पर खड़ा था मैं,
आस लगाए लोगों की;
चाहता था कोई,
सुने मेरी पुकार
मुझे क्या तकलीफ थी,
पूछे कोई;
मुझे आस थी, 
लोगों की मदद की
मैं चाहता था,
कि दुनिया कदम बढ़ाए मेरी ओर
मगर कोई न आया,
थामने मेरा हाँथ
किसी ने भी न पूछा,
मेरे दिल का हाल;
देख लिया था,
सब ने मुझको
मगर मेरे दुख-दर्द को,
किसी ने न समझा;
मैं खड़ा था वहीं,
लोगों के सहारे के लिए 
मगर मुझे लोगो का सहारा तो क्या,
सहानुभूति भी न मिली;
जब लगी थी ठोकर मुझको,
तब मैं खुद ही संभला था
अब समझ में आया था मुझको,
कि होता क्या है जीना;
तब उठाया मैंने भी,
था अपना पहला कदम
और दुनिया छोड़,
चल पड़ा मैं आगे;
होगा अब क्या आगे,
ये सोचा न था मैंने
बढ़ता गया - बढ़ता गया,
दुनिया छोड़ पीछे;
बढ़ते - बढ़ते मिली सफलता, 
लोग लगे थे पूछने मुझको;
तब लोगों ने सराहा मुझको, 
और लोगों ने पहचाना मुझको
जब मिली थी मंजिल मुझको. 
एक बात तो समझ में आई,
अब न करना आस किसी का
और दौड़ भरी इस दुनिया में, 
रुकता है कोई अगर
तो दुनिया बढ़ जाती है, 
उसे कुचलकर आगे;
सब कुछ अनुभव किया था मैंने, 
जब चौराहे पर खड़ा था मैं."
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Thanks for reading 🙏🙏 
"मैं उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरी ये रचना पसन्द आई होगी!! "


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