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द्वितीय सरसंघचालक : माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (गुरूजी) का जीवन परिचय | Madhavrao Sadashiv Golwalkar Biography in Hindi

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर की जीवनी, विचार और गाँधी हत्या के दौरान संघर्ष | RSS Second President Madhav Sadashiv Golwalkar Biography, Education, Struggle and Quotes in Hindi

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर एक महान विचारक थे. जिन्हें जनसाधारण गुरूजी के नाम से जानते थे. गुरूजी का अध्ययन व चिंतन इतना सर्वश्रेष्ठ था कि वे देशभर के युवाओं के लिए प्रेरणा पुंज नहीं बने अपितु पूरे राष्ट्र के प्रेरक पुंज व दिशा निर्देशक बन गए थे.

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर(गुरूजी) का जन्म और परिवार (Madhav Sadashiv Golwalkar Birth and Family)

गुरूजी का जन्म 19 फरवरी 1906 को महाराष्ट्र के रामटेक में हुआ था. इनके पिता जी का नाम श्री सदाशिव राव उपाख्य था. जिन्हें “भाऊ जी” के नाम से जाना जाता था. गुरूजी की माताजी का नाम लक्ष्मीबाई उपाख्य “ताई” था. गुरूजी के बचपन का नाम माधव रखा गया था परन्तु सब उन्हें मधु के नाम से ही बुलाते थे. ताई-भाऊजी की कुल 9 संतानें हुई थीं. जिसमे से केवल गुरूजी ही बचे थे.

माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर की शिक्षा (Madhav Sadashiv Golwalkar Education)

बचपन से ही गुरूजी में कुशाग्र बुद्धि, ज्ञान की लालसा, असामान्य स्मरण शक्ति जैसे गुण थे. सिर्फ 2 वर्ष की उम्र में ही गुरूजी की शिक्षा प्रारंभ उनके पिताजी द्वारा प्रारंभ हो गयी थी. वे उन्हें जो भी पढ़ाते थे उसे वे कंठस्थ कर लेते थे. वर्ष 1919 में उन्होंने हाई स्कूल की प्रवेश परीक्षा में विशेष योग्यता के साथ छात्रवृत्ति प्राप्त की. वर्ष 1922 में गुरूजी ने मैट्रिक्स की परीक्षा जुबली हाई स्कूल से पास की. उसके बाद वर्ष 1924 में नागपुर के ‘हिस्लाप कॉलेज‘ से विज्ञान विषय में इण्टरमीडिएट की परीक्षा पास की. पढाई के साथ उनकी रूचि खेलो के प्रति भी अधिक थी. वे हॉकी और टेनिस खेला करते थे. वे मलखम्ब के करतब में काफी निपुण थे. साथ ही व विद्यार्थी जीवन में उन्होंने बांसुरी और सितार वादन में भी अच्छी प्रवीणता हासिल कर ली थी. वर्ष 1926 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने बी.एस.सी और 1928 में एम.एस.सी की परीक्षा प्राणी शास्त्र विषय में प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण की. इसके बाद वे प्राणी शास्त्र विषय में “मत्स्य जीवन” पर शोध कार्य हेतु मद्रास के मत्स्यालय से जुड गए. परन्तु एक वर्ष पश्चात ही आर्थिक तंगी के कारण गुरूजी को अपना शोध कार्य अधुरा छोड़कर अप्रैल 1929 में नागपुर वापस लौटना पड़ा. इसी बीच दो वर्ष बाद 1931 नागपुर में उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से निर्देशक के पद पर कार्य करने का प्रस्ताव मिला. उन्होंने यह पद स्वीकार कर लिया. यह एक अस्थाई नियुक्ति थी.

गुरूजी का संघ प्रवेश (Madhav Sadashiv Golwalkar Entry in RSS)

गुरूजी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रथम बार बनारस में संपर्क में आये. अपने अध्यापन के कारण वे शीघ्र ही लोकप्रिय हो गए और छात्र उन्हें गुरूजी कहने लगे. उनके इन्ही गुणों के कारण भैयाजी दाणी ने संघ-कार्य तथा संगठन के लिए उनसे अधिकाधिक लाभ उठाने का प्रयास भी किया. जिसके बाद गुरूजी भी शाखा जाने लगे. और शाखा के संघचालक भी बने.

गुरुजी के जीवन में एक नए मोड़ का आरम्भ हो गया. डॉ. हेडगेवार के सानिध्य में उन्होंने एक अत्यंत प्रेरणादायक राष्ट्र समर्पित व्यक्तित्व को देखा. वर्ष 1938 के पश्चात संघ कार्य को ही उन्होंने अपना जीवन कार्य मान लिया.

द्वितीय सरसंघचालक के रूप में नियुक्ति(Madhav Sadashiv Golwalkar as a Second President of RSS)

वर्ष 1939 में गुरूजी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का सरकार्यवाह बनाया गया था. 1940 में डॉ. हेडगेवार का ज्वर बढता ही चला गया और अपने जीवन का अंत समय जानकर उन्होंने कार्यकर्ताओं के सामने गुरूजी को पास बुलाया और कहा “अब आप ही संघ कार्य संभाले”. और 21 जून 1940 को डॉ हेडगेवार का स्वर्गवास हो गया. इस तरह गुरूजी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सरसंघचालक का दायित्व मिला.

संघ पर प्रतिबंध के समय गुरूजी का संघर्ष (Madhav Sadashiv Golwalkar Struggle)

30 जनवरी 1984 को गांधीजी की हत्या के गलत आरोप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तत्कालीन सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया. यह प्रतिबंध 4 फरवरी को लगाया गया था. तब गोलवलकर ने इस घटना की निंदा की थी लेकिन फिर भी गुरूजी और देशभर के स्वयंसेवकों की गिरफ़्तारी हुई. गुरूजी ने पत्रिकाओं के मध्यम से आह्वान किया कि संघ पर आरोप सिद्ध करो या तो फिर प्रतिबंध हटाओ. 26 फरवरी 1948 को देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल ने अपने पत्र में लिखा था “गांधी हत्या के काण्ड में मैंने स्वयं अपना ध्यान लगाकर पूरी जानकारी प्राप्त की है. उससे जुड़े हुए सभी अपराधी लोग पकड़ में आ गए हैं. उनमें एक भी व्यक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नहीं है.”

9 दिसम्बर 1948 को सत्याग्रह आन्दोलन की शुरुआत हुई. जिसमे 5 हजार बाल स्वयंसेवको ने भाग लिया और 77090 स्वयंसेवकों ने विभिन्न जेलों को भर दिया. इसके बाद संघ को लिखित संविधान बनाने का आदेश दे कर प्रतिबन्ध हटा लिया गया और अब गांधी हत्या का इसमें जिक्र तक नहीं हुआ. गुरुजी के सरसंघचालक रहते संघ को अत्यधिक विस्तार मिला.

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गुरूजी की मृत्यु (Madhav Sadashiv Golwalkar Death)

5 जून 1973 के दिन नागपुर में गुरूजी अनंत ने लीन हो गए. गुरूजी धर्मग्रन्थों एवं विराट हिन्दू दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था जिसे उन्होंने राष्ट्र सेवा और संघ के दायित्व की वजह से सहर्ष अस्वीकार कर दिया यदि वो चाहते तो शंकराचार्य बन कर पूजे जा सकते थे किन्तु उन्होंने राष्ट्र और धर्म सेवा दोनों के लिए संघ का ही मार्ग उपयुक्त माना.

गुरूजी के विचार (Madhav Sadashiv Golwalkar Quotes in Hindi)

अनुशासन पर विचार:
1. मानव स्वयं पर अनुशासन के कठोरतम बंधन तब बड़े आनन्द से स्वीकार करता है, जब उसे यह अनुभूति होती है कि उसके द्वारा कोई महान कार्य होने जा रहा है.

आत्मविश्वास पर विचार:
2. मनुष्य के आत्मविश्वास में और अहंकार में अंतर करना कई बार कठिन होता है.

घृणा पर विचार:
3. मानव के हृदय में यदि यह भाव आ जाय कि विश्व में सब-कुछ भगवत्स्वरूप है तो घृणा का भाव स्वयमेव ही लुप्त हो जाता है.

जीवन पर विचार:
4. हमारी मुख्य समस्या है – जीवन के शुद्ध दृष्टिकोण का अभाव और इसी के कारण शेष समस्याएँ प्रयास करने पर भी नहीं सुलझ पातीं.

निर्भयता/निडरता पर विचार:
5. मनुष्य के लिए यह कदाचित अशोभनीय है कि वह मनुष्य- निर्मित संकटों से भयभीत रहे.

प्रगति पर विचार:
6. इस बात से कभी वास्तविक प्रगति नहीं हो सकती कि हम वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त किये बिना अंधों की भांति इधर-उधर भटकते फिरें.

भारत/देश पर विचार:
7. भारत – भूमि इतनी पावन है कि अखिल विश्व में दिखाई देनेवाला सत तत्व यहीं अनुभूत किया जाता है, अन्यत्र नहीं.

शक्ति पर विचार:
8. सच्ची शक्ति उसे कहते हैं जिसमें अच्छे गुण, शील, विनम्रता, पवित्रता, परोपकार की प्रेरणा तथा जन –जन के प्रति प्रेम भरा हो. मात्र शारीरिक शक्ति ही शक्ति नहीं कहलाती.

समाज पर विचार:
9. सेवाएँ अपने चारों ओर परिवेष्टित समाज के प्रति भी अर्पित करनी चाहिए.

सेवा पर विचार:
10. सेवा करने का वास्तविक अर्थ है – हृदय की शुद्धि; अहंभावना का विनाश; सर्वत्र ईश्वरत्व की अनुभूति तथा शांति की प्राप्ति.

स्वतन्त्रता/स्वाधीनता पर विचार:
11. स्वतन्त्रता तो उसी को कहेंगे जिसके अस्तित्व में आने पर हम अपनी आत्मा का, राष्ट्रीय आत्मा का दर्शन करने में तथा स्वयं को व्यक्त करने में सामर्थ्यवान हों.

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