आदमी क्या, रह नहीं पाए सम्हल के देवता आदमी क्या, रह नहीं पाए सम्हल के देवता रूप के तन पर गिरे अक्सर फिसल के देवता बाढ़ की लाते तबाही तो कभी सूखा विकट किसलिए नाराज़ रहते हैं ये जल के देवता भीड़ भक्तों की खड़ी है देर से दरबार में देखिए आते हैं अब कब तक निकल के देवता की चढ़ावे में कमी तो दण्ड पाओगे ज़रूर माफ़ करते ही नहीं हैं आजकल के देवता लोग उनके पाँव छूते हैं सुना है आज भी वो बने थे ‘सीरियल’ में चार