अर्धनारीश्वर एक हाथ में डमरू, एक में वीणा मधुर उदार एक नयन में गरल, एक में संजीवन की धार। जटाजूट में लहर पुण्य की शीतलता-सुख-कारी, बालचंद्र दीपित त्रिपुंड पर बलिहारी! बलिहारी! प्रत्याशा में निखिल विश्व है, ध्यान देवता! त्यागो, बांटो, बांटो अमृत, हिमालय के महान ऋषि! जागो! फेंको कुमुद-फूल में भर-भर किरण, तेज दो, तप दो, ताप-तप्त व्याकुल मनुष्य को शीतल चन्द्रातप दो। सूख गये सर, सरित; क्षारनिस्सीम