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जमाने को कलंकित कर गया हूँ - आचार्य फज़लुर रहमान हाशमी

जमाने को कलंकित कर गया हूँ - आचार्य फज़लुर रहमान हाशमी

जमाने को कलंकित कर गया हूँ जमाने को कलंकित कर गया हूँ मिला भाई तो उससे डर गया हूँ नहीं अनुभूति है जीवंत मेरी मुझे लगता है जैसे मर गया हूँ कहीं कुछ बच गया तो थोड़ा अमृत यही तो ढूंढने सागर गया हूँ बुलंदी की बहुत चाहत थी खुद को मगर पाताल के अंदर गया हूँ रहा गंतव्य से रिश्ता पुराना कभी रुककर कभी थमकर गया हूँ ये दुनिया ही नहीं है मेरी मंजिल जहां पहुंचा हूँ अपने घर गया हूँ दिया है तीन पग विष्णु



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