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हक़ीक़तों को तसव्वुर से खींच लाते हैं - राकेश राही

हक़ीक़तों को तसव्वुर से खींच लाते हैं - राकेश राही

हक़ीक़तों को तसव्वुर से खींच लाते हैं हक़ीक़तों को तसव्वुर से खींच लाते हैं हम ऐसे लोग कहानी नहीं बनाते हैं अजीब लोग हैं बस्ती में रौशनी के लिए दिया जलाते नहीं हैं धुआँ उड़ाते हैं इलाज माँग रहे हैं ये नाक़िदीन-ए-अहद जो आफ़्ताब को दीपक यहाँ दिखाते हैं तुम्हारी फ़िक्र की बैसाखियाँ नहीं लेते हम अपनी फ़िक्र से अपना जहाँ बनाते हैं हमारे पाँव के छाले हमारी मंज़िल तक उबल उबल के नया रास्ता बनाते हैं



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