Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन - बद्र वास्ती

इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन - बद्र वास्ती

इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन हो जाएगी अब आप से तकरार किसी दिन चाहा कभी सोचा कभी तस्वीर बनाई छोड़ा न तिरी याद ने बेकार किसी दिन पलकों पे सितारे लिए राहों में खड़े हैं फ़ुर्सत हो तो आ जाइए सरकार किसी दिन दुनिया में सदा चलती है चाहत की हुकूमत आ जाओ मना लेंगे हम इतवार किसी दिन आया है अकेला तुझे जाना है अकेला बस देखते रह जाएँगे सब यार किसी दिन दौलत के



This post first appeared on Jakhira Poetry Collection, please read the originial post: here

Share the post

इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन - बद्र वास्ती

×

Subscribe to Jakhira Poetry Collection

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×