झूठ कहूँ तो दिल तैयार नहीं होता झूठ कहूँ तो दिल तैयार नहीं होता सच से लेकिन बेड़ा पार नहीं होता आप नफ़ा में ख़ुश हैं हम घाटे में ख़ुश रिश्तों का हम से व्यापार नहीं होता राम की शबरी जंगल में तो रहती है बेरों पर उस का अधिकार नहीं होता सब केवल अपनी कमज़ोरी जीते हैं रिश्ता तो कोई बीमार नहीं होता सुनना सहना चुप रहना फिर हँसना भी ख़ुद पे इतना अत्याचार नहीं होता ख़ुद से डरना कश्ती पे भी शक करना अब