कविता की मौत लाद कर ये आज किसका शव चले और उस छतनार बरगद के तले किस अभागिन का जनाज़ा है रुका बैठ इसके पाँयते गर्दन झुका कौन कहता है कि कविता मर गई? मर गई कविता नहीं तुमने सुना? हाँ वही कविता, कि जिसकी आग से सूरज बना धरती जमी बरसात लहराई और जिसकी गोद में बेहोश पुरवाई पँखुरियों पर जमी, वही कविता, विष्णुपद से जो निकल और ब्रह्मा के कमंडल से उबल बादलों की तहों को झकझोरती चाँदनी के रजतफूल बटोरती शंभु