मेले - जावेद अख़्तर बाप की उँगली थामे इक नन्हा सा बच्चा पहले-पहल मेले में गया तो अपनी भोली-भाली कंचों जैसी आँखों से इक दुनिया देखी ये क्या है और वो क्या है सब उस ने पूछा बाप ने झुक कर कितनी सारी चीज़ों और खेलों का उस को नाम बताया नट का बाज़ीगर का जादूगर का उस को काम बताया फिर वो घर की जानिब लौटे गोद के झूले में बच्चे ने बाप के कंधे पर सर रक्खा बाप ने पूछा नींद आती है वक़्त भी एक परिंदा है उड़ता