सर छुपाने के लिए छत नहीं दी जा सकती सर छुपाने के लिए छत नहीं दी जा सकती हर किसी को ये सहूलत नहीं दी जा सकती साँस लेने के लिए सब को मयस्सर है हवा इस से बढ़ कर तो रिआयत नहीं दी जा सकती तुम को रास आए न आए मिरी बस्ती की फ़ज़ा याँ किसी जाँ की ज़मानत नहीं दी जा सकती एक मुद्दत के शब ओ रोज़ लहू होते हैं तश्त में रख के क़यादत नहीं दी जा सकती ज़ीस्त और मौत का आख़िर ये फ़साना क्या है उम्र क्यूँ