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चमकीले तारे - अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

चमकीले तारे - अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

चमकीले तारे क्या चमकीले तारे है, बड़े अनूठे, प्यारे है! आँखों में बस जाते है, जी को बहुत लुभाते है! जगमग-जगमग करते है, हँस-हँस मन को हरते है। नए जड़ाऊ गहने है, जिन्हें रात ने पहने है! कितने रंग बदलते है, बड़े दिए-से बलते है! घर के किसी उजाले है, जोत जगाने वाले है! हीरे बड़े फबीले है, छवि से भरे छबीले है! कभी टूट ये पड़ते है फूलों-जैसे झड़ते है! चिनगी-सी छिटकाते है, छोड़ फुलझड़ी जाते है!



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