दिल ही को ज़माने की चमक रास न आए
दिल ही को ज़माने की चमक रास न आए
मैंने तो मियां इसमें कई शहर बसाए
अहसान मिरा है कि मैं बस्ती में रुका हूँ
सहरा तो मुझे आज भी आवाज़ लगाए
मैं खुद में कई रोज़ से पहुँचा ही...
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