अर्ज़ी दी तो निकली धूप
कोहरे ने ढक ली थी धूप
दो क़दमों पर मंज़िल थी
ज़ोरों से फिर बरसी धूप
बूढ़ी अम्मा बुनती थी
गर्म स्वेटर जैसी धूप
धूप में तरसे साए को
साए में याद आई धूप
भूकी नंगी बस्ती ने
खाई...
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