हादसों के ज़द में क्या मुस्कुराना छोड़ दें!
ज़ख्म खामोश हैं मरहम लगाना छोड़ दें!
हवा के ख़ौफ़ में है दरख़्तों का वजूद,
कह दो परिंदों से आशियां बनाना छोड़ दें!
वक़्त के मझदार में रिश्तों की बुलन्दी...
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