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जिनके ज़ुल्मों को हम सह गए - मोहित नेगी मुंतज़िर

जिनके ज़ुल्मों को हम सह गए वो हमें बेवफ़ा कह गए। ख़्वाब वो मिलके देखे हुए आंसुओं में सभी बह गए। तुम न आये नज़र दूर तक राह हम देखते रह गए। रो पड़ा गांव में जा के मैं मेरे पुश्तैनी घर ढह गए। जिंदगी...

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