पर नोच परिंदों के परवाज़ की दावत हैयह कैसी नवाजिश है यह कैसी सखावत हैकुछ गौर करो यारो शब्दों की शरारत परसाजिश तो नहीं जिसका अब नाम सियासत हैज़ख्मो की मसीहाई नाख़ून किये जाएँयह कैसा मदावा है यह कैसी...
[यह पोस्ट का एक अंश मात्र है यदि आपको यह लेख या ग़ज़ल/कविता पसंद आई तो लिंक पर जाकर पूरी पोस्ट पढ़े Subscribe our youtube channel https://bit.ly/jakhirayoutube ]