वो जा रहा है अँधेरे में हल उठाए हुए निगाह नीची किए और कदम बढाए हुए जहाँ को फूक सके उसकी एक चिंगारी उस आग को तहे-दामाने-दिल दबाए हुए ख्याल है कि वो बच्चे है जागने वाले जो भूखे-पेट है कल शाम से सुलाए हुए फटी सी धोती है तन पर, फटा सा कुरता है उधड चले है, जो पैबन्द थे लगाए हुए मेरी नज़र में ये उनसे बहुत बुलंद है अम्न जो लोग दैरो-हरम में है सर झुकाए हुए - अम्न लखनवी मायने तहे-दामाने-दिल =