कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता - कार्य करने वाले का समर्पण ,कार्य का आकार -प्रकार ,कार्य की विस्तृत रूप-रेखा उसे छोटा या बड़ा बनाती है - एक अकेला जुलाहा वस्त्र बुनता है तो वो जुलाहा है लेकिन ऐसे ही हज़ारों जुलाहे मिल में जाकर वस्त्र बुनते है तो वहां वो कारीगर हो जाते है और मिल इंडस्ट्री हो जाती है. ये आप पर है कि अपने कार्य में आप अकेले रहना चाहते है या उसे बड़ा बनाना चाहते है .
अगर आपका दिमाग छोटा होगा तो पैतृक संपत्ति में मिला हुआ बड़ा कार्य भी आप छोटा कर लेंगे कि काम में बहुत टेंशन है ,एम्प्लोयी को मैनेज करना टेढ़ी खीर है ,जिसको उधार दो पैसा लेकर भाग जाता है , माल बेचते वक्त भी भिखारी है और पेमेंट मंगाते वक्त भी .ऐसे बड़े काम का क्या फायदा वगैरह -वगैरह आपके तर्क होंगे और बने बनाये बड़े नेटवर्क को काट-पीट कर आप अपने कम्फर्ट जोन में आप आ जायेंगे.
अगर आपका दिमाग बड़ा होगा तो आप एक बड़ा नेटवर्क बनाएंगे . एम्प्लाइज का, कारीगरों का,माल बनाने वाले ,बेचनेवालों का ,खरीदारों का , आढ़तियों का , दलालों का , इंडस्ट्री या व्यवसाय में लगने वाली हर छोटी- बड़ी ज़रुरत की लिस्ट बनाकर उस पर कार्यवाही करेंगे , व्यवसाय को बड़ा बनाने के लिए आप अपने "ईगो " को छोटा करकर हर छोटा -बड़ा काम करेंगे -न भूख़ की परवाह, न प्यास की सुध ,न समय की चिंता , न भाग-दौड़ का तनाव , न थकान की फ़िक्र , यानी आप "आप" न होंगे सिर्फ
एक उद्देश्य रह जायेंगे कि किसी भी तरह सोच साकार हो.
कहने का मतलब कार्य कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता वो "आप" है जो उसे छोटा या बड़ा बनाते है .
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