बागपत जिले में लंबे समय से भट्ठों का संचालन नहीं हो रहा हैं जिसका असर अब निर्माण कार्यो पर भी दिखने लगा है| ईंटो की आपूर्ति न हो पाने की वजह से बाज़ार में ईंटो की कमी देखने को मिल रही है, जिन कारोबारियों के पास स्टाक बचा हुआ है वे उसे बढ़े हुए मूल्यों पर बेंच रहे हैं|
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सर्दी के मौसम में भट्ठा मालिक प्रदूषण की वजह से भट्ठों को बंद कर देते हैं| जिसे देखते हुए अनुमानित डिमांड के अनुसार ईंटों को पहले ही बना के स्टोर कर लिया जाता है| सर्दियाँ ख़त्म हो जाने पर(जनवरी में) भट्ठे पुनः शुरू किये जाते हैं और नए ईंटों की बिक्री पुनः शुरू हो जाती है| RodiDust के विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार इस वर्ष करीब 540 भट्ठे जनवरी माह में भी नहीं चालू हो पाए| जिसके परिणामस्वरूप बाज़ार में ईंटो का अभाव हो गया है जिसका निर्माण उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है|
हर बार, भट्ठा मालिकों को भट्ठा के आकार के आधार पर विनिमय शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। ईंटों के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली पीली रेत को उठाने के लिए दो से तीन लाख रुपए विनिमय शुल्क और दस प्रतिशत रॉयल्टी भी रखी जाती है। जिसके बाद भट्ठा शुरू करने की अनुमति दी जाती है| RodiDust को प्राप्त जानकारी और लोगों से हुई बातचीत के अनुसार इस शुल्क को जमा करने के लिए भट्ठा मालिक नियमित रूप से खनन विभाग के चक्कर लगा रहे हैं मगर खनन अधिकारीयों के ढीले ढाले रवैये के कारण उन्हें कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा| जिसके बाद भी उनका काम नहीं हो पा रहा है और ईंटो की आपूर्ति में रुकाव का कारण बना हुआ है|
इन परिस्थितियों में जिन कारोबारियों के पास ईंटो का स्टॉक बचा हुआ वे उसे एक हजार रूपए तक बढ़ा कर बेंच रहे हैं| पिछले महीने के रेट की बात करें तो एक हजार ईंटे 7 हजार रूपए के भाव में बिक रही थी, जो इस महीने एक हजार रूपए बढ़कर यानि 8000– 8500 रूपए के भाव में बिक रहीं हैं| जिसका सबसे ज्यादा असर आम जनता की जेबों पर पड़ रहा है|
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