Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

यूँ ही अचानक

यूँ ही अचानक
कुछ ख़्याल
मन के किसी कोने में
कुलबुलाने लगे,
पन्ने पे आने को
मुझे सताने लगे,
मचलने लगे
स्वयं का एक रुप पाने को,
मनाने लगे मुझे
एक जामा पहनाने को।

में बैठ गयी लेकर, कलम और डायरी,
शब्दों के सागर में गोते खाती,
एक एक शब्द को काटती, छांटती,
कतरनों की तरह उन्हें सुईं से जोड़ती,
अपने एहसासों के मोती टाँकती,
आंसुओं की झालर से उन को सजाती।

और रात ढ़ले जब नज़र उठायी,
तो एक खूबसूरत कविता मेरी और मुस्कुरा रही थी,
अपने आँचल में मेरे ख्यालों को समेटे,
मानो कोई गीत गुनगुना रही थी।



This post first appeared on अक्स, please read the originial post: here

Share the post

यूँ ही अचानक

×

Subscribe to अक्स

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×