सुंदर सुशील कन्या के पिता ने,
पढ़ा-लिखा कर बेटी को,
वकील बना दिया।
और उसकी विदाई पर
रख के समधी के
क़दमों में पगड़ी,
पत्नी का मंगलसूत्र भी,
दहेज़ की भेंट चढ़ा दिया।
और दुनिया चुप रही,
ये तो संसार का नियम है,
सुंदर सुशील कन्या को ब्याहना,
हर माँ-बाप का धर्म है।
रोते रोते बेटी
ससुराल चली गयी,
सास-ससुर की, पति की,
सेवा में लग गयी।
बड़ी उमंगों से अपना संसार
सजाना जो चाहा,
पत्नी होने का ज़रा अधिकार,
ज़माना जो चाहा,
सास आँखें तरेरकर बोली,
'ये तुम्हारा कोरट नहीं,
हमारा घर है'।
और दुनिया चुप रही,
ये तो संसार का नियम है,
झुकी पलकें, खामोश लब,
हर बहु का धर्म है।
चाकरी करती रही,
परिवार भी बढ़ता रहा,
कमज़ोर तन, मायूस मन,
हर बात से डरता रहा।
चढ़ गयी बलि दहेज़ की,
और दुःख ना सह पायी,
थी वकील, पर पति के खिलाफ़,
एक शब्द ना कह पायी।
और दुनिया चुप रही,
ये तो संसार का नियम है,
करवाचौथ और सहनशीलता,
हर पत्नी का धर्म है.