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ज़िंदगी एक सवाल

रूकती ज़िंदगी, थमती ज़िंदगी,
कभी बाढ़, कभी तूफान में गुम होती ज़िंदगी,
कतरीना, सुनामी के नाम होती ज़िंदगी,
ऊंची इमारतों सी ढ़हती ज़िंदगी,
खा़मोश ज़ुबाँ से हर गम को सहती ज़िंदगी,
रेल में तलवार से कटती ज़िंदगी,
तंदूर की आग में धधकती ज़िंदगी,
फुटपाथ पर गाड़ियों तले मसलती ज़िंदगी,
पेट की आग बुझाने को मचलती ज़िंदगी।

बिलखती ज़िंदगी, सिसकती ज़िंदगी,
सिक्कों की तान पर थिरकती ज़िंदगी,
न्याय के इंतज़ार में कोर्ट के बाहर,
मुट्ठी में रेत-सी फिसलती ज़िंदगी।
अस्पतालों की कतारों में पिघलती ज़िंदगी,
नाम पे दवा के खुद को छलती ज़िंदगी।

मायूस ज़िंदगी, निराश ज़िंदगी,
ज़हर को दूध समझ कर पीती ज़िंदगी,
मौत से भी बदतर जीवन जीती ज़िंदगी।
माँ की पलकों से ट्प ट्प बहती ज़िंदगी,
बालक की तरसती निगाहों में रहती ज़िंदगी।
मज़बूर बदन पे किसी के हाथों की सरसराहट ज़िंदगी,
प्यास से निकली, भूख सी कराहट ज़िंदगी,

बदनाम ज़िंदगी, बदहाल ज़िंदगी,
लाजवाब कर गयी सवाल ज़िंदगी।



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ज़िंदगी एक सवाल

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