रिश्ते ही तो हैं जो,
सताते हैं हर पल,
ख़ुशी में भी, गम में भी,
रुलाते हैं पल पल।
इन्सान दुनिया में,
अकेला ही आता है,
रखता है जहाँ में कदम,
रिश्तों से बंध जाता है।
किसी का बेटा,
किसी का भाई कहलाता है,
फर्ज़ इन रिश्तों का
काँधे पे सज जाता है।
ज्यों ज्यों बड़ा होता है,
रिश्ते बनाता है,
हर रिश्ते के साथ जुडे,
फ़र्ज़ को निभाता है।
किसी से प्यार, किसी से,
ठोकरें खाता है,
और इन कि ख़ातिर,
मिटता चला जाता है।
आख़िरी साँस तक ये,
पीछा नहीं छोड़ते,
अगले जन्म में फि़र
कर्ज़ इनका पाता है।