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धरती सिन्दूरी हो उठी

सूरज ने धरती को चूमा तो
धरती सिंदूरी हो उठी।
गालों की लालिमा,
फैली चहुँ और,
धरती सिंदूरी हो उठी।

प्रभात के इस चुम्बन से,
अलसा कर अँखियाँ खोली तो,
पहलू में सूरज को पा,
धरती सिन्दूरी हो उठी।

भोर के मोती भाल पर,
ज्यों अभी नहा कर निकली हो,
सूरज ने निहार कर देखा तो,
धरती सिन्दूरी हो उठी।

पिहू पिहू कर पपीहा बोला,
पनघट पर मन कान्हा का डोला,
गोपियों की भीगी चोली,
धरती सिन्दूरी हो उठी।

मधुरस पी संतप्त हृदय को,
थोड़ा-सा आराम जो आया,
चहक चहक कर हर पंछी ने,
गीत मिलन का सबको सुनाया।

सुनकर अपना ही अफ़साना,
धरती सिन्दूरी हो उठी,
सूरज ने धरती को चूमा तो,
धरती सिन्दूरी हो उठी.



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धरती सिन्दूरी हो उठी

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