जब जब तुमने राधिका को
प्रेमामृत भेंट किया है,
तब तब मैंने विषपान किया है,
तब तब मैंने विषपान किया है।
तुम्हारा नाम सदा सदा से
उसके संग जुड़ते पाया है।
कृष्ण मैंने बस तुमसे
चुटकी भर कुमकुम पाया है।
कहने को पटरानी तुम्हारी,
दिल की रानी तो राधिका है,
हो तुम सदा उसी के संग,
यहाँ तो केवल काया है।
उस बाला के आगे फीका,
मेने सोलह शृंगार किया है,
तब तब मैंने विषपान किया है......
छम छम नाचे जब राधिका,
बज उठे तब तेरी मुरलिया,
या फिर बंसी की तान पे,
नाच उठे राधा की पायलिया।
और मेरा अंतर्मन रोता,
पाकर भी न पाया तुमको,
हृदय में स्थान दिया है तुमने,
केवल और केवल राधा को।
मेरे सीने पर चले कटारी,
ज्यों सूखे तरू पर तीखी आरी,
तेरी खातिर सी के लब को,
उसका मैंने सत्कार किया है।
हाँ मैंने विषपान किया है,
तब तब मैंने विषपान किया है।
गोपिकाओं के अफ़साने,
सुनकर भी अनसुने किये थे,
कृष्ण तुम्हारे ढेरों फ़साने,
मुझको कर्णप्रिय लगे थे।
में हूँ बस कान्हा की पत्नी,
बाक़ी सब है हंसी - ठिठोली,
बावरा ये मन ना बहका,
राधा है बस एक हमजोली।
किन्तु उस के साए ने मेरी,
हस्ती को नकार दिया है,
हाँ मैंने विषपान किया है,
तब तब मैंने विषपान किया है.